Sunday, March 22, 2009

(संशोधित) मुबारक हो, ग्लोबल वार्मिन्ग भारत पहुंची

हम भारतीयों द्वारा, अभी तक यही माना जा रहा था कि बढ़ते वैश्विक तापमान के दुष्प्रभाव कहीं और हों या न हों लेकिन भारत इनसे अछूता ही रहने वाला है. हमें यूँ लगता रहा है कि बढ़ते पर्यावर्णीय तापमान का दुष्प्रभाव पहले दूसरे देशों पर होगा न कि भारत पर. लेकिन सच्चाई ये है कि इसके दुष्प्रभावों ने भारत के दरवाज़े पर भी दस्तक दे दी है, जिसके चलते....

सुंदरबन क्षेत्र के दो टापू लोहाचारा और सुपारीभंगा, पूरी तरह से, बंगाल की खाड़ी में खो चुके हैं और एक अन्य सबसे बड़े टापू घोडामारा का 40% भूभाग अब तक पानी में डूब चुका है. और मकान व ज़मीन पानी में निरंतर डूबते जा रहे हैं. इस टापू के निवासियों की कृषि भूमि पहले ही पानी में डूब चुकी है. जिसके चलते, धान की खेती करने वाले इसके हजारों किसान निवासियों के सामने रोज़ी-रोटी का सवाल भी मुंह बाए खड़ा है. इन किसानों की हालत केवल शरणार्थियों की ही नहीं बल्कि मानसिक शरणार्थियों की भी बन रही है.

भारत कि नेशनल कोस्टल रेग्युलेटरी अथोरिटी के अनुसार, बढ़ते पर्यावर्णीय तापमान के कारण विश्व में समुद्र का जल स्तर 1.82 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की औसत से बढ़ रहा है लेकिन भारत के सुंदरबन क्षेत्र में इस वृद्धि की दर लगभग दुगनी यानि 3.14 मिलीमीटर प्रतिवर्ष है. यह अत्यंत चिंता का कारण है.

बंगाल की खाड़ी का निरंतर बढ़ता जल स्तर, लगातार कई टापुओं को लील रहा है. इस दशा, में भारत सरकार को ज़ल्दी से ज़ल्दी नीति निर्धारित कर, समय रहते ठोस कदम उठाने होंगे.
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