Sunday, March 29, 2009
मुद्रास्फीति घटने पर भी महंगाई बढ़ने का कारण
क्या कारण है कि सरकार रोज़-रोज़ मुद्रास्फीति में कमी की घोषणाएं करती रहती है फिर भी ये महंगाई है कि न तो रुकने का नाम ले रही है और न ही कम होने का. क्या ये सरकार की, चुनावों के चलते, आंकडों से बुनी जादूगरी है या विपक्ष सही कह रहा है. आईये इस मुद्रास्फीति के अर्थशाश्त्र को साधारण शब्दों में समझने का प्रयास करें.
वास्तव में, मुद्रास्फीति की दर घटने का अर्थ महंगाई कम होने से इतना सीधा भी नहीं है (जितना कि हम समझते हैं) क्योंकि यह दर फिछले सप्ताह इत्यादि, की मुद्रास्फीति की दर के सन्दर्भ में होती है न कि महंगाई के सन्दर्भ में. इसलिए पहले ये जान लें कि मुद्रास्फीति की दर और महंगाई मैं सीधा सम्बन्ध नहीं होता है, अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है. इसीलिए, यूं भी कहा जा सकता है कि
(1) मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि माने महंगाई में वृद्धि,
(2) महंगाई में वृद्धि माने मुद्रा स्फीति की दर में वृद्धि
(3) महंगाई में कमी माने मुद्रा स्फीति की दर में कमी,
(4) लेकिन, मुद्रास्फीति की दर में कमी का मतलब महंगाई में कमी ज़रूरी नहीं.
उदारहरण के रूप में इसे यूं देखा जा सकता है:-
१.१.२००८ किसी वस्तु की कीमत रु.१००/-
१.२.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १०% = ११०/-
१.३.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १०% = १२१/-
१.४.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर १५% = १३९.१५
१.५.२००८ यदि मासिक मुद्रास्फीति दर ०२% = १४१.९३
इसी तरह आगे भी.....
ऊपर के उदाहरण से देखा जा सकता है कि मुद्रास्फीति की दर 15% से घट कर 2% (यानि 13% की कमी) होने पर भी वस्तु की कीमत में रु. 2.78 कि बढोतरी हुई. यानि मंहगाई नहीं घटी. यही अर्थशास्त्र का खेल है जिसे वोटों के खेल में भी बदला जाता रहता है ठीक वैसे ही, जैसे कभी ये कहा गया था कि नदी पर बाँध बनाकर पानी में से बिजली निकाल ली गयी और इस तरह से गरीब किसानों को धोखे से बिना बिजली वाला पानी दिया गया.
यह पोस्ट लिखने का विचार मुझे वास्तव में, एक ब्लॉग के उत्तर में टिपण्णी देने के बाद आया. मुझे लगा कि क्यों न यह जानकारी आप सभी पाठको के साथ भी बांटी जाए.
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