
डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड में बस एक ही मुख्य अंतर है और वो यह कि डेबिट कार्ड से आप अपने बैंक अकाउंट से पैसा निकलते हैं जबकि, क्रेडिट का मतलब है उधार, यानि क्रेडिट कार्ड जारी करने वाली कंपनी आपके लिए पहले भुगतान करती है उसके बाद आपसे पैसा लेती है. यदि आप ध्यान से देखें तो पायेंगे कि कई बैंकों के डेबिट कार्ड पर भी किसी क्रेडिट कार्ड कंपनी का लोगो छापा रहता है. इसका कारण ये है कि बैंक का उक्त क्रेडिट कार्ड कंपनी से उसकी सेवाएँ प्रदान कराने का समझौता रहता है, वास्तव में डेबिट कार्ड धारक के लिए इसका उस समय तक कोई विशेष महत्व नहीं होता जब तक उसके अपने खाते में प्रयाप्त पैसा रहता है. डेबिट कार्ड को ही आजकल ATM कार्ड के नाम से भी जाना जाता है.
इस दृष्टि से देखा जाए तो इन्टरहमेशा नेट-लेनदेन के सन्दर्भ में, डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड दोनों ही सामान दृष्टि से असुरक्षित हैं. बल्कि डेबिट कार्ड अधिक असुरक्षित हो सकता है क्योंकि किसी अन्य द्वारा दुरूपयोग की दशा में, आपके बैंक खाते में उपलब्ध पूरी ही राशि डेबिट कार्ड से निकली जा सकती है (यदि आपने सीमा न बाँधी हो तो) जबकि क्रेडिट कार्ड की एक निश्चित अधिकता सीमा होती ही है.
कई आपने बार देखा होगा कि कुछ प्रतिष्ठान क्रेडिट कार्ड से तो भुगतान स्वीकार कर लेते हैं किन्तु डेबिट कार्ड से नहीं. आप भी सोचते होंगे कि ऐसा क्यों जबकि डेबिट कार्ड से तो प्राप्तकर्ता को कार्ड-धारक के खाते से धन एकदम मिल जायेगा. इस दृष्टि से देखा जाये तो विक्रेता के लिए डेबिट या क्रेडिट कार्ड से भुगतान लेने में कोई अंतर नहीं है क्योंकि, डेबिट कार्ड के केस में उसे आपके बैंक से पैसा मिलता है और क्रेडिट कार्ड कि दशा में उसे क्रेडिट कार्ड कम्पनी (वीसा, मास्टरकार्ड इत्यादि) भुगतान कर देती है. वास्तव में, सचाई यह है कि क्रेडिट कार्ड कम्पनियां अपने-अपने कार्ड के प्रयोग के लिए विक्रेताओं को कमीशन देती हैं. और, कुछ क्रेडिट कार्ड कम्पनियां तो अपने उपभोक्ताओं को क्रेडिट कार्ड का अधिक से अधिक उपयोग कराने की दृष्टि से कई तरह के डिस्काउंट और इनामी प्रलोभन भी देती हैं.
कारण साफ़ है, क्योंकि क्रेडिट कार्ड कम्पनियां इस घाघ-उम्मीद में रहती हैं कि कार्ड उपभोक्ता समय से भुगतान तो नहीं ही करेगा और उन्हें ब्याज वसूलने का मौक़ा मिल जायेगा. यही कारण है कि प्रायः ऐसे शिकायतें मिलती रहती हैं कि समय से भुगतान करने के बाद भी क्रेडिट कार्ड कम्पनियां ग्राहकों के चेक लेट जमा करवाती हैं, कुछ क्रेडिट कार्ड कम्पनियां अपने भेजे बिल के बिना कार्ड धारक से भुगतान स्वीकार नहीं करतीं, भुगतान के नोटिस भुगतान-समय की सीमा अवधि के बाद मिलते हैं या बहुत कम समय रहते मिलते हैं. ऐसी सब शिकायतें यूँ ही नहीं है, क्योंकि ऐसा गलती से नहीं होता है बल्कि कुछ अवांछित किस्म की क्रेडिट कार्ड कम्पनियां ऐसा अपनी सोची समझी नीति के तहत करती हैं.
ये क्रेडिट कार्ड कंपनियाँ ऐसे मुर्गों की सूंघ में लगी रहती हैं जो अपनी हैसियत की चादर से ज़्यादा पाँव फैलाने से रत्ती भर भी परहेज़ नहीं करते. ऐसे लोगों को फाँस लेने के बाद, देसी साहूकारों की ही तरह ये भी चूस चूस कर उनका वो हाल करती हैं कि पूछो मत. देसी साहूकार तो कई बार गंगाजल की कसम उठवा माफ़ भी कर देते थे पर ये आज के ज़माने में भी, कोर्ट -कचेहरी से पहले मुस्टंडे भेज कर मार पिटाई और बेईज्ज़ती से भी गुरेज़ नहीं करतीं. ये आज भी 32% सालाना कि दर से ब्याज वसूलने पर उतारू हैं और सरकार व रिज़र्व बैंक सरीखी संस्थाओं की खुमारी है कि टूटटी ही नहीं, उन्मुक्त व्यापर व्यवस्था की दुहाई देते-देते.
दूसरों की थाली में झाँकने वालों को या तो अपनी हैसियत अच्छे से समझ-देख लेनी चाहिए या फिर उधार पर ही जीने वाले आज के अमेरिकनों की तरह, घर-बार से भाग कर ट्रेलरों में रहने को तैयार रहना चाहिए.
००------------००
सूंघने के लिए तो कंपनियों से अपनी मुर्गियां छोड़ रखी हैं। सूंघती भी हैं और सुंघाती भी हैं जिससे क्रेडिट कार्ड बनते ही जा रहे हैं।
ReplyDelete