Monday, June 28, 2010

लिनक्स संबंधी सबसे बड़ी भ्रांति (3/3)

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(लिनक्स पर तीन लेखों की कड़ी में यह तीसरा व अंतिम लेख है)

 

एक भ्रांति जो आमतौर पर देखने में आती है वह ये है कि लिनक्स में लिखी फ़ाइलें विंडोज़ में नहीं खुलतीं. सबसे पहले तो यह जान लें कि जैसे विंडोज़ में नहीं बल्कि वर्डप्रोसेसर एम.एस.वर्ड या वर्डप्रो वगैहरा में फ़ाइलें लिखी जाती हैं ठीक उसी तरह लिनक्स में भी फ़ाइलें नहीं लिखी जातीं बल्कि इसमें भी विभिन्न वर्ड प्रोसेसर प्रयुक्त होते हैं. और यही वर्डप्रोसेसर फ़ाइलें लिखने व पढ़ने के लिए प्रयोग होते हैं. इसलिए फ़ाइलों का खुलना-न-खुलना वर्ड प्रोसेसर पर निर्भर करता है.

 

एक महत्वपूर्ण बात यदि समझ ली जाए तो बहुत सुविधा होगी और वह ये है कि विंडोज़ के प्रोग्राम जान-बूझकर यह विकल्प नहीं देते कि आप वे फ़ाइलें लिनक्स प्रोग्रामों में खोल सकें क्योंकि विंडोज़, clip_image004लिनक्स को अपना प्रतिद्वंदि मानता है. जबकि लिनक्स का उद्देश्य विंडोज़ को पछाड़ना है इसलिए लिनक्स के प्रोग्राम आपको विकल्प देते हैं कि आप चाहें तो .doc आदि एक्सटेंशन के साथ फ़ाइलें सेव कर विंडोज़ के प्रोग्रामों में खोल कर काम कर सकें.


 

मतलब ये कि विंडोज़ प्रोग्रामों की फ़ाइलों पर आप लिनक्स में भी काम कर सकते हैं. यानि विंडोज़ आपको भले ही अपने ही प्रोग्रामों का ग़ुलाम बना कर रखना चाहता हो, लिनक्स आपको विंडोज़ से तो आज़ादी देता ही है गर आप चाहें तो उन्हीं फ़ाइलों पर विंडोज़ वातावरण में भी काम कर सकते हैं.

 

इतना ही नहीं, भले ही विंडोज़ के एम.एस.वर्ड जैसे प्रोग्राम लिनक्स में न चलते हों पर abiword, ओपन आफ़िस जैसे प्रोग्राम लिनक्स में तो चलते ही हैं, इन्हें आप विंडोज़ में भी इन्सटाल कर सकते हैं और इनपर बनाई गई फ़ाइलें दोनों ही वातावरण में चल सकती हैं बस आपको फ़ाइल सेव करते समय फ़ार्मेट का ध्यान रखना होगा.

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Sunday, June 27, 2010

लिनक्स में वायरस/मैलवेयर क्यों दुखी नहीं करते (2/3)

image (लिनक्स पर तीन लेखों की कड़ी में यह दूसरा लेख है)

विंडोज़ में इतनी फ़ाइलें व फ़ोल्डर होते हैं कि कई बार तो मुझे लगता है कि शायद इनका पता तो अब विंडोज़ बनाने वालों को भी नहीं होगा. विंडोज़ में कुछ सिस्टम फ़ोल्डर डिफ़ाल्ट रूप से छुपे रहते हैं जिन्हें हम हिडन (hidden) के नाम से जानते हैं. विंडोज़ इन्हें बहुत महत्वपूर्ण मानता है. इन्हें डिलीट करने से विंडोज़ काम करना बंद कर सकता है या क्रैश हो सकता है. आमतौर से वायरस बनाने वाले लोग भी अपने प्रोग्राम इसी तरह के हिडन फ़ोल्डर में इंस्टाल करते हैं. इनके नाम विंडोज़ फ़ोल्डरों से मिलते जुलते हो सकते हैं. कभी-कभी तो ये अपने प्रोग्राम विंडोज़ के हिडन फ़ोल्डरों में भी इंस्टाल कर देते हैं. इन दोनों ही दशाओं में वायरस/मैलवेयर को ढूंढ पाना बहुत मुश्किल होता है.

विंडोज़ की तुलना में, लिनक्स बहुत कम फ़ोल्डर प्रयोग करता है. और इसमें हिडन फ़ाइल/फ़ोल्डरों का भी रिवाज़ नहीं है इसलिए अगर लिनक्स में आपको कभी कहीं कोई हिडन फ़ाइल/फ़ोल्डर दिखाई दे तो आंख बंद कर उसे डिलीट कर सकते हैं, लिनक्स को खांसी-जुकाम की शिकायत भी नहीं होगी.




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विंडोज़ ने अपनी एकाधिकारात्मक प्रवृत्तियों के चलते अनगिनत दुश्मन बनाए हैं जो इसके हरेक गढ़ में सेंध लगाने के बस बहाने ही ढूंढते रहते हैं जबकि दूसरी ओर लिनक्स, हैक्सर्ज़ व वायरस बनाने वालों का पसंदीदा दुश्मन कभी नहीं रहा. बल्कि सच तो यह है ये लोग लिनक्स को आगे बढ़ाने में हमेशा तत्पर रहे हैं. विश्व के एक से बढ़कर एक साफ़्टवेयर बनाने वाले रचनात्मक मस्तिष्क अपने खाली समय में लिनक्स की प्रगति के लिए योगदान देते आए हैं. और तो और, लिनक्स के सभी संस्करण नियमित रूप से अपडेट देते रहते हैं जिन्हें प्रयोक्ता मुफ़्त ही डाउनलोड भी कर सकते हैं. लिनक्स, एकाधिकारवाद के विरूद्ध, आज एक आंदोलन का नाम है. ऐसा भी नहीं है कि लिनक्स एकदम ही नि:शंक है, इसमें भी कुछ-कुछ अपवाद हैं पर आप इन्हें अपवाद ही मान कर चलें.

 

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-काजल कुमार

Saturday, June 26, 2010

लिनक्स की शान में क़सीदे (1/3)

(लिनक्स पर तीन लेखों की कड़ी में यह पहला लेख है) image

यह बात सही है कि तकनीकि रूप से लिनक्स अब विन्डोज़ की जगह लेने को तैयार ही नहीं है बल्कि यह विंडोज़ से कहीं आगे भी निकल चुका है. लेकिन, लिनक्स के बारे में दो सबसे महत्वपूर्ण सवाल आज भी पूछे जाते हैं; पहला, यह मुफ़्त है तो फिर भी लोग इसे अपना क्यों नहीं रहे हैं, उत्तर:- वह इसलिए कि इसकी मार्केटिंग के लिए किसी तरह के प्रयास नहीं किये जाते क्योंकि लिनक्स व इसके लगभग सभी उत्पाद मुफ़्त हैं इसलिए इसमें किसी के लिए कोई मुनाफ़ा नहीं है.

दूसरे, विंडोज़ की जगह लिनक्स क्यों प्रयोग करें?

उत्तर:-

  • यह मुफ़्त है, यह लाजवाब है,
  • इस पर चलने वाले लगभग सभी साफ़्टवेयर मुफ़्त तो हैं ही, बहुत उम्दा भी हैं,
  • न इसे हैंग होने की आदत होती है और न ही कंप्यूटर को बार-बार रिस्टार्ट करने की,
  • इस पर ट्राजनों का असर नहीं होता (ट्राजन हार्स आपके कंप्यूटर से जानकारी चुरा कर भेजते रहते हैं),
  • खुली सोच रखने वाले दुनिया के बेहतरीन दिमाग़ एक साथ मिलकर इसे बनाते हैं.
  • लिनक्स को लगभग वायरस मुक्त माना जाता है, इसके साफ़्टवेयर कम स्पेस मांगते हैं.
  • सबसे बड़ी बात, इसने आज तक मुझसे किसी हार्डवेयर का ड्राइवर नहीं मांगा यहां तक कि वायरलेस मोडम का भी नहीं, यह सब कुछ अपने आप न जाने कहां कहां से ढूंढकर इंस्टाल कर देता है और वह भी इतनी जल्दी कि आपको पता तक नहीं लगने देता.
  • कुछ भी इंस्टाल करने के बाद यह कंप्यूटर रिस्टार्ट करने को नहीं कहता,
  • इसकी कंप्यूटर हार्डवेयर की ज़रूरतें भी बहुत ज़्यादा नहीं होतीं.
  • याद कीजिए, विंडोज़ इंस्टाल करने के बाद एक-एक कर हार्डवेयर के ड्राइवर व साफ़्टवेयर इंस्टाल करना प्रसव पीड़ा का सा अनुभव रहा होगा जब हर बार कंप्यूटर रिस्टार्ट होता होगा…
  • यदि आप प्रोग्रामिंग जानते हैं तो आप इसमें जैसे चाहें वैसे बदलाव कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त भी बहुत से कारण हैं जिनके चलते लिनक्स आज कहीं अधिक बेहतरीन आपरेटिंग सिस्टम माना जाता है.
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लिनक्स के कई संस्करण उपलब्ध हैं जैसे उबुंटू, नोप्पिक्स (knoppix) व फ़ेडोरा इत्यादि. लिनक्स के दो संस्करण, नोप्पिक्स व फ़ेडोरा के आपरेटिंग सिस्टम को तो कंप्यूटर पर इंस्टाल करने की ही ज़रूरत नहीं है. बस आप इन्हें अपनी सी.डी., डी.वी.डी या पेन ड्राइव में ही इंस्टाल कर सकते हैं, उन्हें बूटेबल (bootable) बनाकर.

 

इसके बाद आप किसी भी कंप्यूटर पर यह सी.डी., डी.वी.डी या पेन ड्राइव लगाएं, कंप्यूटर को रिस्ट्रार्ट करें. सैटअप में हार्ड-डिस्क से बूट होने के बजाय अपनी आवश्यकतानुसार, पेनड्राइव/सी.डी. से बूट करने का विकल्प दें. बस फिर आपको कुछ नहीं करना है. कुछ ही पलों में आपके लिए लिनक्स चालू हो जाएगा. यदि आप विंडोज़ पर काम कर सकते हैं तो आप लिनक्स पर भी उसी आसानी से काम कर सकते हैं क्योंकि इसे चलाना आज एकदम विंडोज़ चलाने जैसा ही है. केवल बेसिक कमांड कुछ अलग हैं पर उन्हें जानने के लिए सैंकड़ों साइट हैं. यद्यपि आम प्रयोक्ता को इन कमांड की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं पड़ती जब तक कि वह एडवांस काम न करना चाहे.

 

पेनड्राइव इत्यादि के माध्यम से काम करने के कारण यह कुछ धीमे काम करेगा पर यदि इसे हार्डडिस्क पर इंस्टाल कर लें तो यह कहीं तेज़ गति से काम करता है. फ़ेडोरा तो आपको सीधे ही, कोई भी साफ़्टवेयर डाउनलोड करने के ढेरों विकल्प देता है, आप जो चाहें सो डाउनलोड करें. लेकिन याद, रखें पेनड्राइव पर जितने ज़्यादा व भारी साफ़्टवेयर डाउनलोड करते जाएंगे इसकी स्पीड प्रभावित होगी इसलिए पहले अपनी ज़रूरत पहचानें.

 

इनमें हिन्दी के लिए अलग से कुछ भी नहीं करना होता, पहले से ही इसमें हिन्दी फ़ांट रहते हैं इसलिए सभी हिन्दी साइट भी आप आराम से देख सकते हैं, इस मामले में मुझे फ़ेडोरा नोपिक्स से कहीं आगे लगा. फ़ेडोरा का इंटरफ़ेस अधिक सुंदर है, ज्यादा वालपेपर का विकल्प देता है, शुरू होने व बंद होने में कम समय लेता है, स्टार्ट करने के लिए पासवर्ड की सुविधा देता है, आपके किये काम को आसानी से सहेज लेता है व दूसरे कंप्यूटर पर काम करने पर भी कुछ नहीं भूलता. देवलिस (devlys) फ़ांट से आप हिन्दी में रेमिंगटन कीबोर्ड की तरह किसी भी वर्डप्रोसेसर में टाइप कर सकते हैं. यद्यपि आफ़लाइन हिन्दी यूनिकोड में टाइपिंग के बारे में अभी इसे और प्रगति करनी है. हिन्दी Phonetic टाइपिंग के लिए भी इसमें दो अन्य फ़ांट हैं, अंग्रेजी के अतिरिक्त इन्हें भी सैट कर लेने से आप इन्हें टास्कबार से ही toggle कर सकते हैं. इसमें, सभी प्रमुख दूसरी भारतीय भाषाओं के विकल्प भी उपलब्ध हैं.

यदि आपने अभी भी लिनक्स नहीं आजमाया है तो और समय व्यर्थ न गंवाएं क्योंकि आपको इसका न्यौता देने कभी कोई नहीं आएगा. इसलिए आप इसे आज से ही अपना सकते हैं, और वह भी मुफ़्त, बस आपके पास कुछ समय व अनलिमिटेड डाउनलोड वाला ब्राडबैंड कनेक्शन भर होना चाहिये. मेरी मानिये, दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलिए, आपको यह स्वतंत्रता बहुत पसंद आएगी.

 

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    -काजल कुमार

Sunday, June 13, 2010

पोर्न साइट्स पर ये ख़तरे भी हैं

नैतिक ख़तरों के अलावा, पोर्न साइट्स पर कई दूसरे ख़तरे भी हैं जिनकी जानकारी अभी हाल में 35,000 डोमेन पर की गई एक शोध में सामने आई है. इस शोध के तथ्य बी.बी.सी. की साइट पर प्रकाशित हुए हैं. जो मुख्य बातें सामने आई है वे यूं हैं:-
  • ये साइट्स कई तरह के साइबर अपराधों में लिप्त पाई गई हैं.
  • ये साइट्स कई तरह के malware ही आने वालों के कंप्यूटरों पर नहीं छोड़तीं बल्कि पैसा उगाहने के तरह तरह के हथकंडों से भी बाज़ नहीं आतीं.
  • शोधकर्ताओं ने कुछ नकली पोर्न साइट्स बनाकर कर यह भी पाया कि इन साइट्स पर आने वाले लोग इन ख़तरों से अनभिज्ञ होते हैं.
  • शोध में यह भी पाया गया कि इन साइट्स पर आने वाले 70 प्रतिशत पुरूषों की आयु 24 साल से कम होती है.(यद्यपि इस आंकड़े की सत्यता पर मुझे संदेह है, क्योंकि इसे तय करना बहुत कठिन काम है)
  • जिन साइट-दर्शकों पर शोध की गई उनमें से लगभग आधे लोगों के कंप्यूटर या ब्राउज़र पर पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं थे.
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