Saturday, December 18, 2010

आप ब्लागर हैं ! तो यह जानकारी आपको भी होनी ही चाहिये.


7 इंच स्क्रीन वाला टच पैड जिसे टैबलेट कहा जाता है, भारत आ पहुंचा है. ये हैं सैमसंग का Galaxy Touch Pad व
Olive कंपनी का OlivePad. इनके अतिरिक्त बीनाटोन व एक अन्य कंपनी का टेबलेट भी भारत में उपलब्ध होने की ख़बर है पर इनकी वास्तविक जानकारी किसी को नहीं है. 7 इंच वाले टेबलेट अभी नई चीज़ है बाज़ार में.

टैबलेट को बाजार में प्रसिद्ध करने का श्रेय नि:संदेह iPad को जाता है जो 11 इंच स्क्रीन का है लेकिन इसमें कई फ़ीचर नहीं हैं जो 7 इंच के टेवलेट में हैं. iPad की कमियां जग-जाहिर हो चुकी हैं.

सैमसंग व ओलिव पैड के 7 इंची इन टेबलेट की खूबियां ये हैं:-
0- इनमें चार चीज़ें एक साथ समाहित हैं जो हैं - 3MP कैमरा (स्टिल व मूवी दोनों), वाई-फ़ाई इंटरनेट, ई-बुक रीडर, व 3G फ़ोन. अगर आप आमतौर से यात्रा करते हैं तो यह आपके लिए वरदान है क्योंकि आप डायरी के साइज़ वाले इस एक ही गैजेट  में ये चार चीज़ें एकसाथ ले जा सकते हैं.
0- इसके अलावा एक, कम पिक्सेल वाला कैमरा सामने की ओर अलग से है जो इंटरनैट चैटिंग या वीडयो वार्ता के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
0- ये एंड्रोयड के 2.2 संस्करण पर चलते हैं इसलिए आप लीनिक्स की ही तरह हज़ारों साफ़्टवेयर मुफ़्            त में डाउनलोड कर सकते हैं.
0- इनकी इंटरनेट कनेक्टीविटी आम डैस्कटाप या लैपटाप जैसी ही अच्छी है.
0- ये iPad या Kindle की तरह locked device नहीं हैं. इन घोड़ों की लगाम एकदम आपके हाथ रहती है.
0- इनमें दो पिद्दे से स्टीरियो स्पीकर तो हैं ही, आप हैडफ़ोन या ब्लूटूथ से भी आवाज़ सुन सकते हैं/  बात कर सकते हैं.
0- इनमें मोबाइल फ़ोन के बाक़ी सभी फ़ीचर हैं जो आप सोच सकते हैं जैसे रिकार्डर, प्लेयर आदि.
0- 3G कार्ड होने के कारण आप भी इसमें ब्लैकबेरी जैसे नखरे का मज़ा ले सकते हैं (ब्लैकबेरी में आपको तब-तब सूचना मिल जाती है जब-जब आपको इ-मेल आती है. मोबाइल में आप केवल इंटरनेट कनेक्ट करके ही देख सकते है कि मेल आई है लेकिन आप जितनी देर इंटरनेट से कनेक्ट रहते हैं आपका मीटर चलता रहता है. 3G में दो फंडे होते हैं पहला, आम मोबाइल की तरह का रीचार्ज, जो आपके बात करने या इंटरनेट कनेक्ट करने से पैसा घटाता है. जबकि दूसरा रीचार्ज केवल डेटा डाउनलोड के ही समय पैसा घटाता है. इसलिए जैसे ही आपके लिए इ-मेल आती है तो आपका मोबाइल 3G डेटा कनेक्शन उसी समय सूचना देता है. ब्लैकबेरी में भी, बाक़ी फ़ोनों के अलावा, यही एक अलग बात है, बस.) तो भक्तजनो ! 3G में दो तरह के रीचार्ज कूपन डलते हैं. आवाज वाला तो कई साल की वैलेडिटी का होता है पर डेटा वाला 30 दिन के लिए ही है अभी (आगे चलकर ये ऊंट भी पहाड़ के नीचे आ जाएगा, चिंता न करें). अभी स्कीम 100 रूपये से शुरू होती है.  30 दिन की समाप्ति के बाद भी आप को 3G सुविधा मिलती रहती है पर तब आपका बात करने वाला पैसा घटना शुरू हो जाता है, जिसकी दर कुछ ज़्यादा होती है. अभी भारत में MTNL – BSNL का 3G पर एकाधिकार है पर शायद जल्दी दूसरों की किस्मत खुल जाए, कौन जाने.
0- ये लैपटाप की तरह, बटन दबाते ही, स्लीप मोड में जा सकते हैं इसलिए इन्हें बार-बार आन-आफ़ करने से भी पीछा छूट जाता है.
0- एक बार चार्ज करके आप इन्हें 4-6 घंटे लगातार चला सकते हैं. स्टैंडबाई मोड में तो ये 400 घंटे से ज़्यादा चलने का दावा करते हैं.
0- इनके ई-बुक रीडर बहुत उपयोगी हैं ये पिछला पढ़ा पन्ना याद रखते हैं इसलिए अगली बार ठीक वहीं से खुलते हैं जहां आपने पढ़ना छोड़ा था. आप इसमें फांट, उनका रंग व  साइज तो खुद तय कर ही सकते हैं, बैकग्राउंड रंग भी तय कर सकते हैं.
0- इनमें 32 GB के, मोबाइल में डलने वाले SD कार्ड अलग से डाले जा सकते हैं (मेरे ख़्याल से भले आदमियों के लिए अभी इतनी मेमोरी काफी है, इतनी ही अधिकतम मेमारी iPad में आती है लेकिन उसे आप सेट से बाहर निकाल नहीं सकते)
0- इनमें आप माइक्रोसोफ़्ट व पी डी एफ़ दस्तावेज पढ़ सकते हैं. doc, excel व powerpoint में तो आप इनमें लिख भी सकते हैं.
0- इनके स्क्रीन पर आने वाले की-बोर्ड बहुत सुविधा जनक हैं, आप आराम से टाइप कर सकते हैं.
0- आप इन्हें सीधे ही, आम कंप्यूटर से USB ड्राइव की ही तरह कनेक्ट कर इनके SD कार्ड पर/ से कट-कापी-पेस्ट भी कर सकते हैं.

दूसरे फ़ायदे
0 आप इन्हें किताब ही की तरह कहीं भी किसी भी करवट लेट कर पढ़ सकते हैं (जो लैपटाप व डैस्कटाप में संभव नहीं ).
0 ओलिव पैड तो यह भी बताता है कि आपने फ़लां फ़ोटो कहां व कब खींची थी, बाक़ायदा नक्शे पर. (मैं तो हैरान ही रह गया था).
0 ओलिव पैड में MapMyIndia.com का 2 GB डेटा अलग से दिया है इसलिए आप भारत में कहीं की भी यात्रा इसमें दिए नक़्शों के आधार पर कर सकते हैं. आपको गूगलमैप व इंटरनैट कनेक्टीविटी पर निर्भर रहने की ज़रूरत नहीं बची.
0 जहां 3G कनेक्शन नहीं हो तो वहां 2G पर भी काम करते हैं ये पैड. इनका वज़न पौने चार सौ ग्राम है. शीशे की capacitive स्क्रीन हैं जो, सस्ती resistive की तुलना में कहीं अच्छी मानी जाती हैं.
0 ई-बुक पढ़ना कहीं आसान है क्योंकि इनमें फ़ोंट किताबों से भी बड़े दिखाई देते हैं.
0 इनमें पेज अपनी डायरेक्शन, टैबलेट को घुमाने के हिसाब से बदल लेते हैं इसलिए आप इन्हें आड़ा या तिरछा कैसे भी पढ़
 सकते हैं.
0 ओपेरा ब्राउज़र डाउनलोड कर लें तो यह अपनी चौड़ाई के हिसाब से बेबसाइट के शब्दों को फिट कर लेता है इसलिए आपको केवल पेज ऊपर नीचे करना होता है दाएं-बांए नहीं.
0 ये GPS सेवा से भी जोड़े जा सकते हैं.
0 इनमें और भी बहुत कुछ है जिनके बारे में मुझे ख़ुद ही पता नहीं. आए दिन नई नई चीज़ें पता लगती रहती हैं इनके बारे में.

ओलिव पैड व सैमसंग गैलेक्सी टच की तुलना

0 ओलिव पैड में flash 10-1 नहीं चलता है इसलिए इंटरनेट पर वीडियो टीवी नहीं देखा जा सकता लेकिन skyfire ब्राउज़र से यह समस्या दूर हो जाती है, बल्कि स्काइफायर तो फ्रेम भी ड्राप नहीं होने देता. सैमसंग गैलेक्सी टच में फलैश राजीखुशी चलता है. लेकिन एक जुगाड़ है जिसके चलते फ़्लैश भी इसमें चल जाता है. मैं इसका प्रयोग यूं ही कर रहा हूं. ज़्यादा जानकारी के लिए यहां देखें http://vt100hacks.blogspot.com/2011/07/flash-palyer-for-olive-pad.html?showComment=1313922518474#c5907591541994118110 यहां भी देखा जा सकता हैं http://androidcampus.blogspot.com/2011/07/app-working-adobe-flash-player-for.html
0 ओलिव पैड made in china है जिसे भारतीय कंपनी, Haier के सहयोग से बना रही है लेकिन डरें नहीं, इसकी क्वालिटी उस तरह की चाइनीज़ नहीं है जैसी कि इसकी मशहूरी है. निश्चिंत रहें, मैं इसे पिछले लगभग दो महीने से प्रयोग कर रहा हूं, यह बल्ले बल्ले प्रोडक्ट है. सैमसंग गैलेक्सी टच का अपना नाम है व विज्ञापन भी खूब आता है पर सैमसंग इसे न तो मोबाइल बताता है न टेबलेट, सैमसंग दोनों श्रेणियों के ग्राहकों को आकर्षित करने की उम्मीद में ऐसा किये बैठा है, जबकि सच यही है कि ये मोबाइल फ़ोन का स्थानापन्न नहीं ही है.
0 ओलिव पैड के प्रोसेसर की गति कम है सैमसंग गैलेक्सी टच की कुछ ज़्यादा पर ये फ़र्क़ उन्हें ही पता लगता है जिनका काम ही ये पता लगाना है. आपको  और मुझे यह फ़र्क़ पता ही नहीं चलता, इसलिए यह बेमानी है.
0 इसी तरह ओलिव पैड की  आन बोर्ड मैमोरी 512 MB है इतनी ही ये एस डी कार्ड से भी ले लेता है.  गैलेक्सी टच की 2GB है पर तब तक कोई खास फ़र्क़ तब तक नहीं पड़ता जब तक कि आप इनपर फूं-फां टाइप गेम खेलने की ज़िद न करें. मेरे ख़्याल से यह गैजैट इस तरह के खिलाड़ियों के लिए बनाया भी नहीं गया है.

सबसे बड़ी कमजोरी
0 एंड्रोयड के कारण अभी भारतीय भाषाएं, हिन्दी सहित, अभी इस पर नहीं चलती हैं. इसलिए आप हिन्दी वेबपेज नहीं पढ़ सकते.
0 इन पर किताबें पढ़ने से आंखें जल्दी थकती हैं पर हां, रोशनी पर्याप्त होने पर यह समस्या इतनी भी बड़ी नहीं लगती. यही समस्या लैप टाप पर ही यूं तो है ही.

दोनों में सबसे बड़ा अंतर
ओलिव पैड 23 हज़ार का है तो सैमसंग गैलेक्सी टच 37-38 हज़ार का. ओलिव पैड ने मुझे 16 GB का एस डी कार्ड मुफ़्त दिया तो कीमत रह गई 21.5 हज़ार. अब आप करीब 15 हज़ार रूपये यूं ही ज़्यादा ख़र्च करने के मूड में हो तो आपको सैमसंग ही लेना चाहिये वरना ओलिव पैड दा जवाब नईं. मेरे हिसाब से सैमसंग कहीं अधिक महंगा टेबलेट है जिसे ख़रीदना सझदारी के अलावा ही कुछ और कहा जाएगा. ओलिव पैड वालों की साइट ये है http://www.olivetelecom.in/ सैमसंग के बारे में कहने की ज़रूरत नहीं है.
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Saturday, October 16, 2010

बिल गेट्स और iPhone के स्टीव के बीच क्या ये पंगा है ?

ये चित्र इ-मेल में मिले थे :-)
(चित्र पर क्लिक कर इसे बड़ा कर देखें)

Monday, August 30, 2010

हॉटमेल का डब्बा आज फिर गोल हो गया

बेचारे बिल गेट्स से, कुछ लोग कितनी नफ़रत करते हैं इसका पता इस बात से चलता है कि इस समय 0735 (IST) ( 30  अगस्त, 2010) को हॉटमेल काम नहीं कर रहा है, लगता है कि इसके किसी प्रेमी ने फिर शरारत की है:-

Thursday, July 8, 2010

मोबाइल फ़ोन के सभी functions का उपयोग ?..न न न

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मोबाइल
फ़ोन जहां एक ओर सुविधा देते हैं वहीं दूसरी ओर झुंझलाहट व तनाव भी देते हैं. यहां मेरा अभिप्राय तरंगों के तनाव से नहीं है अपितु उस तनाव से है जिसके चलते आप अपने मोबाइल फ़ोन में दी गई उन सभी सुविधाओं का उपयोग नहीं कर पाते जो या तो मोबाइल फ़ोन विक्रेता ने आपको फ़ोन बेचते समय बताई थीं या आपने उनके बारे में मोबाइल कंपनी की वेबसाइट पर पढ़ा है या उसके मैनुअल में कुछ-कुछ बताया गया है. या कहीं और से आपको पता चल ही गया है. इसीके चलते मेरी हालत तो महज़ इतनी ही रह जाती है कि घंटी बजे तो हरा बटन दबा कर हैलो कर लो.....बात ख़त्म करनी हो तो लाल बटन दबा दो.

आपने
बहुत सी सुविधाओं के बारे में पढ़ा होगा कि आपका फ़ोन ई-मेल व इंटरनेट सुविधा-समर्थ है, इसमें 2G व 3G जैसी सुविधाएं मिल सकती हैं, कि आपके फ़ोन में WAP, GPRS जैसी सुविधाएं भी हैं, आप इसमें भारतीय भाषाएं भी टाइप कर सकते हैं, इसमें बहुत सी मल्टीमीडिया सुविधाएं हैं, आप इसे डायरी की तरह भी प्रयोग कर सकते हैं इत्यादि. और तो और, नए मोबाइल फ़ोन इतने फ़ंक्शनस के साथ आ रहे हैं कि ये पहले से भी कहीं अधिक पेचीदा होते जा रहे हैं.

मोबाइल
फ़ोन की दुनिया में आपके लिए दो ही इंटरफ़ेस हैं एक, फ़ोन विक्रेता दूसरा सेवा-प्रदाता. फ़ोन विक्रेता तो बस केले-साबुन-परचून की ही तरह मोबाइल फ़ोन भी बेचता है, उसे न तो मोबाइल फ़ोन की तकनीक से कोई मतलब होता है न ही उसका इतना स्तर होता है कि वह कुछ मूलभूत functions से आगे सीखकर आपको भी कुछ बता सके क्योंकि मोबाइल फ़ोन बनाने वाली कंपनियों के यहां ऐसा कोई प्रावधान नहीं होता कि वे फ़ोन विक्रेताओं को अपने विभिन्न माडलों के फ़ंक्शनस की कोई ट्रेनिंग देती हों. कनेक्शन सेवा-प्रदाता को तो बस नोट कूटने से ही फ़ुर्सत नहीं होती इसलिए उनके यहां जो लोग बिठाए जाते हैं वे या तो बिल ठीक करने की कंप्लेंट सुनते हैं या नए कनेक्शन की फ़ीस बताते हैं…बस्स.

ऐसे
में, मोबाइल फ़ोन के मालिक की हालत उस नवकिशोर की सी होती है जो यौन शिक्षा की जानकारी के लिए अपने ही हमउम्रों के यहां-वहां डोलता घूमता है. इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी या तो सिलसिलेवार नहीं मिलती या बहुत क्लिष्ट लगती है, जिन्हें आप जानते हैं वे भी आपकी ही तरह कुछ ज़्यादा नहीं जानते. दुकान वाला भी निरीह सा ही दिखता है. सर्विस प्रदाता तो वावळे गांव के पहाड़ के नीचे आए ऊंट सा बैठा दीखता है, मोबाइल फ़ोन बनाने वाली कंपनी की वेबसाइट पर या तो “हमसे संपर्क करें” जैसा कुछ होता ही नहीं या फिर आपकी ई-मेल का व्यक्तिगत उत्तर न देकर कोई दार्शनिक सा उत्तर भेज कर पूरे कांड की ही इतिश्री कर देती है वो कंपनी. ऐसे में कोई करे तो क्या करे.

मोबाइल
फ़ोन बनाने वाली बड़ी कंपनियां आमतौर से अपने सर्विस सेंटर स्थापित करती हैं. यहां दो तरह के लोग काम करते हैं एक, वे जो केवल हार्डवेयर के बारे में जानते हैं दूसरे वे जो केवल पहले वाला मोबाइल सोफ़्टवेयर फ़ार्मेट कर नया रि-इंस्टाल करना भर जानते हैं. इससे ज़्यादा ये भी कुछ नहीं जानते. ऐसे में कहीं बेहतर होगा कि मोबाइल फ़ोन निर्माता अपने सर्विस सेंटरों पर ऐसे लोगों की भी नियुक्ति करें जो पूर्णत: प्रशिक्षित हों और यदि कोई ग्राहक किन्ही फ़ंक्शनज़ की जानकारी चाहता हो तो वह भी उसे दी जाए. हो सकता है, आने वाले कल में इस बात पर भी विचार किया जाए.
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-काजल कुमार

Tuesday, July 6, 2010

कुछ समाचार तकनीक व विज्ञान की दुनिया से

अमेरिका के राष्ट्रपति ने लगभाग 10,000 करोड़ रूपये के बराबर धनराशि सौर ऊर्जा  क्षेत्र में कार्य के लिए स्वीकृत की है. इस राशि से नए बिजलीघर स्थापित किये जाएंगे. भारत में भी एक सौर ऊर्जा मंत्रालय है जिसके मंत्री श्री फ़ारूख़ अबदुल्ला हैं. क्या कभी भारत भी इस क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करेगा !
क्या आप जानते हैं कि    माइक्रोसो़फ़्ट की मंशा, बाज़ार में दो मोबाइल फ़ोन लाने की थी. इनका नाम “किन” रखा गया है. लेकिन अब इसने साफ़ किया है कि ये फ़ोन केवल अमेरिका तक ही सीमित रहेंगे. क्या माइक्रोसोफ़्ट को आत्मबोध हो गया है कि हार्डवेयर इसके बस की बात नहीं?

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बच्चों को आगे बढ़ाने की अंधी दौड़ केवल भारत के ही मध्यवर्ग में नहीं है, अमेरिकी भी इसमें पीछे नहीं हैं. लेकिन वे केवल पढ़ाई के लिए जान देने में ही विश्वास नहीं करते बल्कि उन्होंने एक नया तरीक़ा अपनाया है और वो है बच्चों की पैदाइश ही निर्धारित कर लेना. इस दिशा में, आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि अपुष्ट समाचारों के अनुसार, वहां एक शुक्राणु बैंक की स्थापना की गई है जिसमें नोबल पुरूस्कार विजेताओं के शुक्राणु रख गए हैं जिन्हें भावी माताएं अच्छे बच्चे पैदा करने के लिए प्रयोग कर रही हैं.
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-काजल कुमार

Monday, June 28, 2010

लिनक्स संबंधी सबसे बड़ी भ्रांति (3/3)

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(लिनक्स पर तीन लेखों की कड़ी में यह तीसरा व अंतिम लेख है)

 

एक भ्रांति जो आमतौर पर देखने में आती है वह ये है कि लिनक्स में लिखी फ़ाइलें विंडोज़ में नहीं खुलतीं. सबसे पहले तो यह जान लें कि जैसे विंडोज़ में नहीं बल्कि वर्डप्रोसेसर एम.एस.वर्ड या वर्डप्रो वगैहरा में फ़ाइलें लिखी जाती हैं ठीक उसी तरह लिनक्स में भी फ़ाइलें नहीं लिखी जातीं बल्कि इसमें भी विभिन्न वर्ड प्रोसेसर प्रयुक्त होते हैं. और यही वर्डप्रोसेसर फ़ाइलें लिखने व पढ़ने के लिए प्रयोग होते हैं. इसलिए फ़ाइलों का खुलना-न-खुलना वर्ड प्रोसेसर पर निर्भर करता है.

 

एक महत्वपूर्ण बात यदि समझ ली जाए तो बहुत सुविधा होगी और वह ये है कि विंडोज़ के प्रोग्राम जान-बूझकर यह विकल्प नहीं देते कि आप वे फ़ाइलें लिनक्स प्रोग्रामों में खोल सकें क्योंकि विंडोज़, clip_image004लिनक्स को अपना प्रतिद्वंदि मानता है. जबकि लिनक्स का उद्देश्य विंडोज़ को पछाड़ना है इसलिए लिनक्स के प्रोग्राम आपको विकल्प देते हैं कि आप चाहें तो .doc आदि एक्सटेंशन के साथ फ़ाइलें सेव कर विंडोज़ के प्रोग्रामों में खोल कर काम कर सकें.


 

मतलब ये कि विंडोज़ प्रोग्रामों की फ़ाइलों पर आप लिनक्स में भी काम कर सकते हैं. यानि विंडोज़ आपको भले ही अपने ही प्रोग्रामों का ग़ुलाम बना कर रखना चाहता हो, लिनक्स आपको विंडोज़ से तो आज़ादी देता ही है गर आप चाहें तो उन्हीं फ़ाइलों पर विंडोज़ वातावरण में भी काम कर सकते हैं.

 

इतना ही नहीं, भले ही विंडोज़ के एम.एस.वर्ड जैसे प्रोग्राम लिनक्स में न चलते हों पर abiword, ओपन आफ़िस जैसे प्रोग्राम लिनक्स में तो चलते ही हैं, इन्हें आप विंडोज़ में भी इन्सटाल कर सकते हैं और इनपर बनाई गई फ़ाइलें दोनों ही वातावरण में चल सकती हैं बस आपको फ़ाइल सेव करते समय फ़ार्मेट का ध्यान रखना होगा.

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Sunday, June 27, 2010

लिनक्स में वायरस/मैलवेयर क्यों दुखी नहीं करते (2/3)

image (लिनक्स पर तीन लेखों की कड़ी में यह दूसरा लेख है)

विंडोज़ में इतनी फ़ाइलें व फ़ोल्डर होते हैं कि कई बार तो मुझे लगता है कि शायद इनका पता तो अब विंडोज़ बनाने वालों को भी नहीं होगा. विंडोज़ में कुछ सिस्टम फ़ोल्डर डिफ़ाल्ट रूप से छुपे रहते हैं जिन्हें हम हिडन (hidden) के नाम से जानते हैं. विंडोज़ इन्हें बहुत महत्वपूर्ण मानता है. इन्हें डिलीट करने से विंडोज़ काम करना बंद कर सकता है या क्रैश हो सकता है. आमतौर से वायरस बनाने वाले लोग भी अपने प्रोग्राम इसी तरह के हिडन फ़ोल्डर में इंस्टाल करते हैं. इनके नाम विंडोज़ फ़ोल्डरों से मिलते जुलते हो सकते हैं. कभी-कभी तो ये अपने प्रोग्राम विंडोज़ के हिडन फ़ोल्डरों में भी इंस्टाल कर देते हैं. इन दोनों ही दशाओं में वायरस/मैलवेयर को ढूंढ पाना बहुत मुश्किल होता है.

विंडोज़ की तुलना में, लिनक्स बहुत कम फ़ोल्डर प्रयोग करता है. और इसमें हिडन फ़ाइल/फ़ोल्डरों का भी रिवाज़ नहीं है इसलिए अगर लिनक्स में आपको कभी कहीं कोई हिडन फ़ाइल/फ़ोल्डर दिखाई दे तो आंख बंद कर उसे डिलीट कर सकते हैं, लिनक्स को खांसी-जुकाम की शिकायत भी नहीं होगी.




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विंडोज़ ने अपनी एकाधिकारात्मक प्रवृत्तियों के चलते अनगिनत दुश्मन बनाए हैं जो इसके हरेक गढ़ में सेंध लगाने के बस बहाने ही ढूंढते रहते हैं जबकि दूसरी ओर लिनक्स, हैक्सर्ज़ व वायरस बनाने वालों का पसंदीदा दुश्मन कभी नहीं रहा. बल्कि सच तो यह है ये लोग लिनक्स को आगे बढ़ाने में हमेशा तत्पर रहे हैं. विश्व के एक से बढ़कर एक साफ़्टवेयर बनाने वाले रचनात्मक मस्तिष्क अपने खाली समय में लिनक्स की प्रगति के लिए योगदान देते आए हैं. और तो और, लिनक्स के सभी संस्करण नियमित रूप से अपडेट देते रहते हैं जिन्हें प्रयोक्ता मुफ़्त ही डाउनलोड भी कर सकते हैं. लिनक्स, एकाधिकारवाद के विरूद्ध, आज एक आंदोलन का नाम है. ऐसा भी नहीं है कि लिनक्स एकदम ही नि:शंक है, इसमें भी कुछ-कुछ अपवाद हैं पर आप इन्हें अपवाद ही मान कर चलें.

 

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-काजल कुमार

Saturday, June 26, 2010

लिनक्स की शान में क़सीदे (1/3)

(लिनक्स पर तीन लेखों की कड़ी में यह पहला लेख है) image

यह बात सही है कि तकनीकि रूप से लिनक्स अब विन्डोज़ की जगह लेने को तैयार ही नहीं है बल्कि यह विंडोज़ से कहीं आगे भी निकल चुका है. लेकिन, लिनक्स के बारे में दो सबसे महत्वपूर्ण सवाल आज भी पूछे जाते हैं; पहला, यह मुफ़्त है तो फिर भी लोग इसे अपना क्यों नहीं रहे हैं, उत्तर:- वह इसलिए कि इसकी मार्केटिंग के लिए किसी तरह के प्रयास नहीं किये जाते क्योंकि लिनक्स व इसके लगभग सभी उत्पाद मुफ़्त हैं इसलिए इसमें किसी के लिए कोई मुनाफ़ा नहीं है.

दूसरे, विंडोज़ की जगह लिनक्स क्यों प्रयोग करें?

उत्तर:-

  • यह मुफ़्त है, यह लाजवाब है,
  • इस पर चलने वाले लगभग सभी साफ़्टवेयर मुफ़्त तो हैं ही, बहुत उम्दा भी हैं,
  • न इसे हैंग होने की आदत होती है और न ही कंप्यूटर को बार-बार रिस्टार्ट करने की,
  • इस पर ट्राजनों का असर नहीं होता (ट्राजन हार्स आपके कंप्यूटर से जानकारी चुरा कर भेजते रहते हैं),
  • खुली सोच रखने वाले दुनिया के बेहतरीन दिमाग़ एक साथ मिलकर इसे बनाते हैं.
  • लिनक्स को लगभग वायरस मुक्त माना जाता है, इसके साफ़्टवेयर कम स्पेस मांगते हैं.
  • सबसे बड़ी बात, इसने आज तक मुझसे किसी हार्डवेयर का ड्राइवर नहीं मांगा यहां तक कि वायरलेस मोडम का भी नहीं, यह सब कुछ अपने आप न जाने कहां कहां से ढूंढकर इंस्टाल कर देता है और वह भी इतनी जल्दी कि आपको पता तक नहीं लगने देता.
  • कुछ भी इंस्टाल करने के बाद यह कंप्यूटर रिस्टार्ट करने को नहीं कहता,
  • इसकी कंप्यूटर हार्डवेयर की ज़रूरतें भी बहुत ज़्यादा नहीं होतीं.
  • याद कीजिए, विंडोज़ इंस्टाल करने के बाद एक-एक कर हार्डवेयर के ड्राइवर व साफ़्टवेयर इंस्टाल करना प्रसव पीड़ा का सा अनुभव रहा होगा जब हर बार कंप्यूटर रिस्टार्ट होता होगा…
  • यदि आप प्रोग्रामिंग जानते हैं तो आप इसमें जैसे चाहें वैसे बदलाव कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त भी बहुत से कारण हैं जिनके चलते लिनक्स आज कहीं अधिक बेहतरीन आपरेटिंग सिस्टम माना जाता है.
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लिनक्स के कई संस्करण उपलब्ध हैं जैसे उबुंटू, नोप्पिक्स (knoppix) व फ़ेडोरा इत्यादि. लिनक्स के दो संस्करण, नोप्पिक्स व फ़ेडोरा के आपरेटिंग सिस्टम को तो कंप्यूटर पर इंस्टाल करने की ही ज़रूरत नहीं है. बस आप इन्हें अपनी सी.डी., डी.वी.डी या पेन ड्राइव में ही इंस्टाल कर सकते हैं, उन्हें बूटेबल (bootable) बनाकर.

 

इसके बाद आप किसी भी कंप्यूटर पर यह सी.डी., डी.वी.डी या पेन ड्राइव लगाएं, कंप्यूटर को रिस्ट्रार्ट करें. सैटअप में हार्ड-डिस्क से बूट होने के बजाय अपनी आवश्यकतानुसार, पेनड्राइव/सी.डी. से बूट करने का विकल्प दें. बस फिर आपको कुछ नहीं करना है. कुछ ही पलों में आपके लिए लिनक्स चालू हो जाएगा. यदि आप विंडोज़ पर काम कर सकते हैं तो आप लिनक्स पर भी उसी आसानी से काम कर सकते हैं क्योंकि इसे चलाना आज एकदम विंडोज़ चलाने जैसा ही है. केवल बेसिक कमांड कुछ अलग हैं पर उन्हें जानने के लिए सैंकड़ों साइट हैं. यद्यपि आम प्रयोक्ता को इन कमांड की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं पड़ती जब तक कि वह एडवांस काम न करना चाहे.

 

पेनड्राइव इत्यादि के माध्यम से काम करने के कारण यह कुछ धीमे काम करेगा पर यदि इसे हार्डडिस्क पर इंस्टाल कर लें तो यह कहीं तेज़ गति से काम करता है. फ़ेडोरा तो आपको सीधे ही, कोई भी साफ़्टवेयर डाउनलोड करने के ढेरों विकल्प देता है, आप जो चाहें सो डाउनलोड करें. लेकिन याद, रखें पेनड्राइव पर जितने ज़्यादा व भारी साफ़्टवेयर डाउनलोड करते जाएंगे इसकी स्पीड प्रभावित होगी इसलिए पहले अपनी ज़रूरत पहचानें.

 

इनमें हिन्दी के लिए अलग से कुछ भी नहीं करना होता, पहले से ही इसमें हिन्दी फ़ांट रहते हैं इसलिए सभी हिन्दी साइट भी आप आराम से देख सकते हैं, इस मामले में मुझे फ़ेडोरा नोपिक्स से कहीं आगे लगा. फ़ेडोरा का इंटरफ़ेस अधिक सुंदर है, ज्यादा वालपेपर का विकल्प देता है, शुरू होने व बंद होने में कम समय लेता है, स्टार्ट करने के लिए पासवर्ड की सुविधा देता है, आपके किये काम को आसानी से सहेज लेता है व दूसरे कंप्यूटर पर काम करने पर भी कुछ नहीं भूलता. देवलिस (devlys) फ़ांट से आप हिन्दी में रेमिंगटन कीबोर्ड की तरह किसी भी वर्डप्रोसेसर में टाइप कर सकते हैं. यद्यपि आफ़लाइन हिन्दी यूनिकोड में टाइपिंग के बारे में अभी इसे और प्रगति करनी है. हिन्दी Phonetic टाइपिंग के लिए भी इसमें दो अन्य फ़ांट हैं, अंग्रेजी के अतिरिक्त इन्हें भी सैट कर लेने से आप इन्हें टास्कबार से ही toggle कर सकते हैं. इसमें, सभी प्रमुख दूसरी भारतीय भाषाओं के विकल्प भी उपलब्ध हैं.

यदि आपने अभी भी लिनक्स नहीं आजमाया है तो और समय व्यर्थ न गंवाएं क्योंकि आपको इसका न्यौता देने कभी कोई नहीं आएगा. इसलिए आप इसे आज से ही अपना सकते हैं, और वह भी मुफ़्त, बस आपके पास कुछ समय व अनलिमिटेड डाउनलोड वाला ब्राडबैंड कनेक्शन भर होना चाहिये. मेरी मानिये, दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलिए, आपको यह स्वतंत्रता बहुत पसंद आएगी.

 

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    -काजल कुमार

Sunday, June 13, 2010

पोर्न साइट्स पर ये ख़तरे भी हैं

नैतिक ख़तरों के अलावा, पोर्न साइट्स पर कई दूसरे ख़तरे भी हैं जिनकी जानकारी अभी हाल में 35,000 डोमेन पर की गई एक शोध में सामने आई है. इस शोध के तथ्य बी.बी.सी. की साइट पर प्रकाशित हुए हैं. जो मुख्य बातें सामने आई है वे यूं हैं:-
  • ये साइट्स कई तरह के साइबर अपराधों में लिप्त पाई गई हैं.
  • ये साइट्स कई तरह के malware ही आने वालों के कंप्यूटरों पर नहीं छोड़तीं बल्कि पैसा उगाहने के तरह तरह के हथकंडों से भी बाज़ नहीं आतीं.
  • शोधकर्ताओं ने कुछ नकली पोर्न साइट्स बनाकर कर यह भी पाया कि इन साइट्स पर आने वाले लोग इन ख़तरों से अनभिज्ञ होते हैं.
  • शोध में यह भी पाया गया कि इन साइट्स पर आने वाले 70 प्रतिशत पुरूषों की आयु 24 साल से कम होती है.(यद्यपि इस आंकड़े की सत्यता पर मुझे संदेह है, क्योंकि इसे तय करना बहुत कठिन काम है)
  • जिन साइट-दर्शकों पर शोध की गई उनमें से लगभग आधे लोगों के कंप्यूटर या ब्राउज़र पर पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं थे.
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Sunday, May 23, 2010

फ़ज़ी टिप्पणियों का इलाज

अरविन्द मिश्रा जी का ब्लाग है क्वचिदन्यतोअपि..........! जिस पर उनकी पोस्ट आई है जिससे यह लगा कि शायद उनका ई मेल अकाउंट हैक हो गया है और कोई उनका अकांउट प्रयोग कर उनके नाम से टिप्पणियां कर रहा है.


18 मई 2010 को वेद कुरआन ब्लाग पर मेरे नाम से एक टिप्पणी किसी ने की थी. मुझे भी हैरानी हुई थी. पर फ़र्क़ ये था कि वहां न तो मेरा चित्र था न ही मेरा नाम उस तरह से लिखा था जैसा मैं लिखता हूं. टिप्पणी का लिंक मेरे ब्लाग की ही एक पोस्ट इंगित कर रहा था.


ऐसे में, इसका एक ही इलाज है जो ब्लागर- सेवा प्रदाता की ज़िम्मेदारी भी बनती है कि जैसे ई मेल आई.डी. केवल एक ही हो सकती है उसी तरह केवल एक ही नाम (चाहे ब्लाग का या, ब्लागर का) सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन के लिए स्वीकृत करे. अन्यथा जब तक यह बाधित नहीं किया जाएगा, यह तो होता ही रहेगा.


आमतौर से, ज़्यादा से ज़्यादा IP एड्रैस ढूंढा जा सकता है पर आम ब्लागर न तो इसे ब्लाक कर सकता है (जैसे कि ई मेल में स्पैम ब्लाकर होता है) और न ही मुफ़्त के कानूनी पचड़े में पड़ना पसंद करता है. और सबसे बड़ी बात, शिकायत में ब्लागर लिखेगा भी क्या कि उसे क्या नुक़्सान हुआ ... भारत में हत्यारों को तो सज़ा मिलती नहीं फ़र्ज़ी टिप्पणियों के लिए किसके पास इतना समय, पैसा और धैर्य है !
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Saturday, May 15, 2010

हम चीन का मुक़ाबला नहीं कर सकते


आज के 'टाइम्स आफ़ इन्डिया' (15 मई, 2010) में एक लेख छपा है "विचारों की शक्ति". यह लेख चीन के बारे में है. इसमें चीन की राजनैतिक व्यवस्था व पूंजी स्रोत से इतर, केवल विचारों की बात की गई है. जैसे:-


- अकेली यांगत्सी नदी पर ही 17 पुल बनाए जा रहे हैं. इनमें से कई पुलों के लिए 100 साल तक की मुरम्मत का ध्यान रखा जा रहा है.
- पुलों पर दरारों की निगरानी के लिए बिजली से चलने वाली ट्रामों की व्यवस्था है.
- कई पुल लंबाई, उंचाई और सस्पेंशन में विश्व कीर्तिमान बनाने वाले हैं.
- चीन की अभियांत्रिकी ने पश्चिम को पीछे छोड़ दिया है.
- चीन में अभी हवाई यातायात कम है किन्तु अगले 25 वर्ष का पूर्वानुमान लगा कर बीजिंग हवाई अड्डे को लंदन के हीथ्रो से कुल क्षेत्रफल में अधिक रखा गया है..
- कम समय में अधिक यात्रियों को लाने-ले जाने की दृष्टि से कई रेलों की गति 400 कि0मी0 प्रति घंटा से अधिक है.
- तिब्बत को मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए समुद्रतल से 15000 फुट की उंचाई वाले पहाड़ी-क्षेत्र में 2000 कि0मी0 लंबी रेल-लाइन बिछा डाली है, जबकि हम आज भी अंग्रजों की बनाई शिमला-कालका रेल-लाइन का ही राग अलाप रहे हैं.
- भारत में केवल वर्तमान सुविधाओं के विस्तार के ही प्रयत्न किए जाते हैं जबकि चीन हर चीज़ को नए सिरे बना रहा है चाहे वह आवासीय परिसर हों, सड़कें हों, बिजली हो या फर चाहे पानी ही की बात क्यों न हो.


अतिरिक्त इसके, जर्मनी में बनी संसार की पहली चुंबकीय रेल “Levitation Train" जर्मनी में चलने से भी पहले चीन में चली थी. जितनी विदेशी पूंजी चीन जा रही है उसका मुश्किल से 10% भारत आ रहा है. चीन ने अपने पूंजीवादी पांव अफ़्रीका में कई साल पहले से ही फैलाने शुरू कर दिये हैं जबकि अपेक्षाकृत, भारत आज भी इन अफ़्रीकी देशों को मुंह-ज़ुबानी समर्थन से आगे नहीं कुछ नहीं दे रहा है. चीन को पता है कि अफ़्रीका विश्व का अंतिम पिछड़ा इलाक़ा है जहां आने वाले कई दशकों तक पूंजी निवेश की पर्याप्त संभावनाएं रहने वाली हैं, इसीलिए वह कहीं पहले से पैठ बनाने में लगा हुआ है. हम सो रहे हैं.


भारत को छुटभइयेपन से ही फ़ुर्सत नहीं है. दिल्ली में छटांक भर के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भी पर्याप्त मूलभूत सुविधाओं के निर्माण को लेकर भी रोज़ बवाल हुआ रहता है. ले दे कर भारत के पास केवल एक ई0 श्रीधरन हैं जिन्होंने मगरमच्छनुमा नेताओं के बावजूद कोंकण और मैट्रो बनाईं. दूसरे, चतुर्भुज राजमार्ग व तीसरे, पश्चिमी-सीमा रेल मार्ग अन्य बचा खुचा कुछ है जिसकी हम डींगें हांक सकते हैं. यद्यपि नदियों को जोड़ने की योजना ठंडे बस्ते हैं वहीं दूसरी ओर बिजली व पानी की दिशा में हम घोंघा-चाल से चल रहे हैं. आवासीय क्षेत्र तो माफ़िया के भरोसे ही छोड़ रखा है हमने.


लेकिन फिर भी चिंतातुर हो गहन मनन करने की अपेक्षा, चीन को लेकर गाल बजाने से बाज नहीं आते हम.
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-काजल कुमार

Sunday, February 28, 2010

सभी फ़ार्मेट खोलने वाला मुफ़्त वर्ड-प्रोसेसर



यदि आप विंडोज़ आपरेटिंग सिस्टम प्रयोग कर रहे हैं तो ज़रूर कभी न कभी इस समस्या से दो-चार हुए होंगे जब आपको लगा होगा कि फलां फ़ाईल माइक्रोसाफ़्ट वर्ड में नहीं खुल रही. ऐसा आमतौर से उन फ़ाइलों के साथ होता है जो आपको या तो इ-मेल से मिलती हैं या किसी इंटरनेट साइट से डाउनलोड करते हैं.

यह इसलिए होता है कि जब ये फ़ाइलें किसी ऐसे साफ़्टवेयर को प्रयोग कर लिखी जाती हैं जिनके साथ विंडोज़ आपरेटिंग कंपैटीवल न हो. ये फ़ाइलें प्राय: उन साफ़्टवेयर को प्रयोग कर लिखी होती हैं जो लीनेक्स जैसे ओपन सोर्स प्लेटफ़ार्म पर चलते हैं. इन्हें पढ़ने के लिए आमतौर से स्टार आफ़िस जैसे ओपन सोर्स वर्ड प्रोसेसर की ज़रूरत होती है जो आमतौर से 250-300 एम.बी. तक के होते हैं.

माइक्रोसाफ़्ट इस बात का पूरा ध्यान रखता है कि उसके साफ़्टवेयर, लीनेक्स जैसे प्रतिद्वन्दी आपरेटिंग सिस्टम पर न चलें जबकि प्रतिद्वन्दी अपने साफ़्टवेयर विंडोज़ आपरेटिंग सिस्टम पर भी चलने के लिए बनाते रहते हैं. ऐबीवर्ड ऐसा ही एक ओपन सोर्स वर्ड प्रोसेसर है.

ऐबीवर्ड केवल 7-8 एम.बी. का है, मुफ़्त है, विंडोज़ आपरेटिंग सिस्टम के अलावा लीनेक्स जैसे कई दूसरे  प्लेटफ़ार्म पर भी चलता है और सबसे बड़ी बात, तमाम तरह के फ़ार्मेट की फ़ाइलें केवल खोल ही नहीं सकता बल्कि कई अन्य फ़ार्मेट में सहेज भी सकता है. बस देखने में देसी-सा सीधा-सादा लगता है पर विश्वास करें, आप इसकी शक़्ल पर न जाऐं यह बहुत बढ़िया है. आप इसे यहां से डाउनलोड कर सकते हैं.
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-काजल कुमार





Sunday, January 17, 2010

वायरलेस मोडम प्रयोग करे हो ? तब तो ज़रूर पढ़ें…

यदि आप इंटरनेट कनेक्शन के लिए वायरलेस मोडम प्रयोग कर रहे हैं तो आपको यह विचार ज़रूर आता होगा कि और कौन लोग हैं जो आपके मोडम से जुड़े हैं. यह विचार आपको उस समय तो ज़रूर ही आता होगा जब आपको लगता हो कि इंटरनेट गति कुछ कम लग रही है. उस समय आप जानना चाहते हैं कि यदि कोई दूसरा भी आपके इंटरनेट मोडम का प्रयोग कर रहा हो तो उसे कुछ समय के लिए रूकने को कहा जाए.

 

घर पर या अपने ही कार्यालय में तो वायरलेस मोडम सुविधा की दृष्टि से प्रयोग किये ही जाते हैं. वायरलेस मोडम को सुरक्षित (secured connection) रूप से कनेक्ट करने का प्रावधान तो रहता है पर कई लोग इसका प्रयोग नहीं करते यह सोच कर कि उनके कनेक्शन की डाउनलोड सीमा असीमित है या, कौन हर कंप्यूटर के लिए पासवर्ड बताता घूमे. बात तो सही है पर याद रखना चाहिए कि बैंडविड्थ सीमित होने के कारण जितने अधिक कंप्यूटर इंटरनेट का प्रयोग एक ही समय करेंगे, उनकी गतिसीमा उतनी ही कम हो जाएगी.

 

एक ही वायरलेस मोडम का प्रयोग करते हुए इंटरनेट से जुड़े दूसरे कंप्यूटरों की जानकारी के लिए आप यह छोटा सा फ्रीवेयर http://zamzom.com/ से डाउनलोड कर इंस्टाल कर सकते हैं. Fast Scan बटन से यह आपके कंप्यूटर की जानकारी देता है जबकि, Deep Scan बटन दबाने पर मोडम प्रयोग कर रहे दूसरे कंप्यूटरों की जानकारी देता है.

 

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0-काजल कुमार

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