Saturday, June 26, 2010

लिनक्स की शान में क़सीदे (1/3)

(लिनक्स पर तीन लेखों की कड़ी में यह पहला लेख है) image

यह बात सही है कि तकनीकि रूप से लिनक्स अब विन्डोज़ की जगह लेने को तैयार ही नहीं है बल्कि यह विंडोज़ से कहीं आगे भी निकल चुका है. लेकिन, लिनक्स के बारे में दो सबसे महत्वपूर्ण सवाल आज भी पूछे जाते हैं; पहला, यह मुफ़्त है तो फिर भी लोग इसे अपना क्यों नहीं रहे हैं, उत्तर:- वह इसलिए कि इसकी मार्केटिंग के लिए किसी तरह के प्रयास नहीं किये जाते क्योंकि लिनक्स व इसके लगभग सभी उत्पाद मुफ़्त हैं इसलिए इसमें किसी के लिए कोई मुनाफ़ा नहीं है.

दूसरे, विंडोज़ की जगह लिनक्स क्यों प्रयोग करें?

उत्तर:-

  • यह मुफ़्त है, यह लाजवाब है,
  • इस पर चलने वाले लगभग सभी साफ़्टवेयर मुफ़्त तो हैं ही, बहुत उम्दा भी हैं,
  • न इसे हैंग होने की आदत होती है और न ही कंप्यूटर को बार-बार रिस्टार्ट करने की,
  • इस पर ट्राजनों का असर नहीं होता (ट्राजन हार्स आपके कंप्यूटर से जानकारी चुरा कर भेजते रहते हैं),
  • खुली सोच रखने वाले दुनिया के बेहतरीन दिमाग़ एक साथ मिलकर इसे बनाते हैं.
  • लिनक्स को लगभग वायरस मुक्त माना जाता है, इसके साफ़्टवेयर कम स्पेस मांगते हैं.
  • सबसे बड़ी बात, इसने आज तक मुझसे किसी हार्डवेयर का ड्राइवर नहीं मांगा यहां तक कि वायरलेस मोडम का भी नहीं, यह सब कुछ अपने आप न जाने कहां कहां से ढूंढकर इंस्टाल कर देता है और वह भी इतनी जल्दी कि आपको पता तक नहीं लगने देता.
  • कुछ भी इंस्टाल करने के बाद यह कंप्यूटर रिस्टार्ट करने को नहीं कहता,
  • इसकी कंप्यूटर हार्डवेयर की ज़रूरतें भी बहुत ज़्यादा नहीं होतीं.
  • याद कीजिए, विंडोज़ इंस्टाल करने के बाद एक-एक कर हार्डवेयर के ड्राइवर व साफ़्टवेयर इंस्टाल करना प्रसव पीड़ा का सा अनुभव रहा होगा जब हर बार कंप्यूटर रिस्टार्ट होता होगा…
  • यदि आप प्रोग्रामिंग जानते हैं तो आप इसमें जैसे चाहें वैसे बदलाव कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त भी बहुत से कारण हैं जिनके चलते लिनक्स आज कहीं अधिक बेहतरीन आपरेटिंग सिस्टम माना जाता है.
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लिनक्स के कई संस्करण उपलब्ध हैं जैसे उबुंटू, नोप्पिक्स (knoppix) व फ़ेडोरा इत्यादि. लिनक्स के दो संस्करण, नोप्पिक्स व फ़ेडोरा के आपरेटिंग सिस्टम को तो कंप्यूटर पर इंस्टाल करने की ही ज़रूरत नहीं है. बस आप इन्हें अपनी सी.डी., डी.वी.डी या पेन ड्राइव में ही इंस्टाल कर सकते हैं, उन्हें बूटेबल (bootable) बनाकर.

 

इसके बाद आप किसी भी कंप्यूटर पर यह सी.डी., डी.वी.डी या पेन ड्राइव लगाएं, कंप्यूटर को रिस्ट्रार्ट करें. सैटअप में हार्ड-डिस्क से बूट होने के बजाय अपनी आवश्यकतानुसार, पेनड्राइव/सी.डी. से बूट करने का विकल्प दें. बस फिर आपको कुछ नहीं करना है. कुछ ही पलों में आपके लिए लिनक्स चालू हो जाएगा. यदि आप विंडोज़ पर काम कर सकते हैं तो आप लिनक्स पर भी उसी आसानी से काम कर सकते हैं क्योंकि इसे चलाना आज एकदम विंडोज़ चलाने जैसा ही है. केवल बेसिक कमांड कुछ अलग हैं पर उन्हें जानने के लिए सैंकड़ों साइट हैं. यद्यपि आम प्रयोक्ता को इन कमांड की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं पड़ती जब तक कि वह एडवांस काम न करना चाहे.

 

पेनड्राइव इत्यादि के माध्यम से काम करने के कारण यह कुछ धीमे काम करेगा पर यदि इसे हार्डडिस्क पर इंस्टाल कर लें तो यह कहीं तेज़ गति से काम करता है. फ़ेडोरा तो आपको सीधे ही, कोई भी साफ़्टवेयर डाउनलोड करने के ढेरों विकल्प देता है, आप जो चाहें सो डाउनलोड करें. लेकिन याद, रखें पेनड्राइव पर जितने ज़्यादा व भारी साफ़्टवेयर डाउनलोड करते जाएंगे इसकी स्पीड प्रभावित होगी इसलिए पहले अपनी ज़रूरत पहचानें.

 

इनमें हिन्दी के लिए अलग से कुछ भी नहीं करना होता, पहले से ही इसमें हिन्दी फ़ांट रहते हैं इसलिए सभी हिन्दी साइट भी आप आराम से देख सकते हैं, इस मामले में मुझे फ़ेडोरा नोपिक्स से कहीं आगे लगा. फ़ेडोरा का इंटरफ़ेस अधिक सुंदर है, ज्यादा वालपेपर का विकल्प देता है, शुरू होने व बंद होने में कम समय लेता है, स्टार्ट करने के लिए पासवर्ड की सुविधा देता है, आपके किये काम को आसानी से सहेज लेता है व दूसरे कंप्यूटर पर काम करने पर भी कुछ नहीं भूलता. देवलिस (devlys) फ़ांट से आप हिन्दी में रेमिंगटन कीबोर्ड की तरह किसी भी वर्डप्रोसेसर में टाइप कर सकते हैं. यद्यपि आफ़लाइन हिन्दी यूनिकोड में टाइपिंग के बारे में अभी इसे और प्रगति करनी है. हिन्दी Phonetic टाइपिंग के लिए भी इसमें दो अन्य फ़ांट हैं, अंग्रेजी के अतिरिक्त इन्हें भी सैट कर लेने से आप इन्हें टास्कबार से ही toggle कर सकते हैं. इसमें, सभी प्रमुख दूसरी भारतीय भाषाओं के विकल्प भी उपलब्ध हैं.

यदि आपने अभी भी लिनक्स नहीं आजमाया है तो और समय व्यर्थ न गंवाएं क्योंकि आपको इसका न्यौता देने कभी कोई नहीं आएगा. इसलिए आप इसे आज से ही अपना सकते हैं, और वह भी मुफ़्त, बस आपके पास कुछ समय व अनलिमिटेड डाउनलोड वाला ब्राडबैंड कनेक्शन भर होना चाहिये. मेरी मानिये, दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलिए, आपको यह स्वतंत्रता बहुत पसंद आएगी.

 

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    -काजल कुमार

5 comments:

  1. अरे वाह! बहुत अच्छी जानकारी!
    अब मैं अपना लैपटॉप लेने की तैयारी में हूँ. सबसे पहला काम उसमें पार्टीशन करके उबंटू 10.4 नेटबुक ही इंस्टाल करूंगा.

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  2. उम्दा लेख. अलबत्ता, कुछ सुधार/अपडेट करना चाहूंगा -
    ट्रॉजन का असर होता है - अलबत्ता विंडोज की अपेक्षा ट्रॉजन कम हैं.
    बहुत से (कम प्रचलित) हार्डवेयरों के ड्राइवरों को अलग से इंस्टाल करना होता है.
    रीस्टार्ट हमेशा आवश्यक नहीं होता, पर कभी कभी विशेष परिस्थिति में आवश्यक होता है.
    लिनक्स के दो नहीं, बल्कि तमाम बड़े संस्करण जैसे कि उबुन्टु, मंड्रिवा, सूसे, फेडोरा इत्यादि को उनके लाइव सीडी/डीवीडी से बिना इंस्टाल किए पूरी क्षमता से चला सकते हैं. किसी भी कम्प्यूटर पर.
    ऑफ़लाइन हिन्दी टाइपिंग के लिए लिनक्स में हर किस्म की सुविधा है. इसमें बिल्टइन हिन्दी इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड से हिन्दी टाइप कर सकते हैं. स्किम तथा आईबस से इनस्क्रिप्ट, रेमिंगटन, फोनेटिक इत्यादि से हिन्दी यूनिकोड टाइप कर सकते हैं. इसमें वाइन के जरिए बारहा भी बढ़िया चलता है.

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  3. क्या बात है जी. लिनक्स तो हमें भी प्रिय है जी.

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  4. बात तो सही कहते है लेकिन क्या यह सही है,
    'सबसे बड़ी बात, इसने आज तक मुझसे किसी हार्डवेयर का ड्राइवर नहीं मांगा यहां तक कि वायरलेस मोडम का भी नहीं, यह सब कुछ अपने आप न जाने कहां कहां से ढूंढकर इंस्टाल कर देता है और वह भी इतनी जल्दी कि आपको पता तक नहीं लगने देता.'
    लिनेक्स में सबसे बड़ी मुश्किल सारे हार्डवेयर के चलने की है। यह समस्या कम हो रही है लिकेन है तो।

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  5. हमे भी लिनक्स से बहुत प्यार है खास कर उबुन्टू से |
    यह टिप्पणी भी उबुन्टू मे सीधे हिन्दी टाइप कर कर रहा हुं |

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