Saturday, May 15, 2010

हम चीन का मुक़ाबला नहीं कर सकते


आज के 'टाइम्स आफ़ इन्डिया' (15 मई, 2010) में एक लेख छपा है "विचारों की शक्ति". यह लेख चीन के बारे में है. इसमें चीन की राजनैतिक व्यवस्था व पूंजी स्रोत से इतर, केवल विचारों की बात की गई है. जैसे:-


- अकेली यांगत्सी नदी पर ही 17 पुल बनाए जा रहे हैं. इनमें से कई पुलों के लिए 100 साल तक की मुरम्मत का ध्यान रखा जा रहा है.
- पुलों पर दरारों की निगरानी के लिए बिजली से चलने वाली ट्रामों की व्यवस्था है.
- कई पुल लंबाई, उंचाई और सस्पेंशन में विश्व कीर्तिमान बनाने वाले हैं.
- चीन की अभियांत्रिकी ने पश्चिम को पीछे छोड़ दिया है.
- चीन में अभी हवाई यातायात कम है किन्तु अगले 25 वर्ष का पूर्वानुमान लगा कर बीजिंग हवाई अड्डे को लंदन के हीथ्रो से कुल क्षेत्रफल में अधिक रखा गया है..
- कम समय में अधिक यात्रियों को लाने-ले जाने की दृष्टि से कई रेलों की गति 400 कि0मी0 प्रति घंटा से अधिक है.
- तिब्बत को मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए समुद्रतल से 15000 फुट की उंचाई वाले पहाड़ी-क्षेत्र में 2000 कि0मी0 लंबी रेल-लाइन बिछा डाली है, जबकि हम आज भी अंग्रजों की बनाई शिमला-कालका रेल-लाइन का ही राग अलाप रहे हैं.
- भारत में केवल वर्तमान सुविधाओं के विस्तार के ही प्रयत्न किए जाते हैं जबकि चीन हर चीज़ को नए सिरे बना रहा है चाहे वह आवासीय परिसर हों, सड़कें हों, बिजली हो या फर चाहे पानी ही की बात क्यों न हो.


अतिरिक्त इसके, जर्मनी में बनी संसार की पहली चुंबकीय रेल “Levitation Train" जर्मनी में चलने से भी पहले चीन में चली थी. जितनी विदेशी पूंजी चीन जा रही है उसका मुश्किल से 10% भारत आ रहा है. चीन ने अपने पूंजीवादी पांव अफ़्रीका में कई साल पहले से ही फैलाने शुरू कर दिये हैं जबकि अपेक्षाकृत, भारत आज भी इन अफ़्रीकी देशों को मुंह-ज़ुबानी समर्थन से आगे नहीं कुछ नहीं दे रहा है. चीन को पता है कि अफ़्रीका विश्व का अंतिम पिछड़ा इलाक़ा है जहां आने वाले कई दशकों तक पूंजी निवेश की पर्याप्त संभावनाएं रहने वाली हैं, इसीलिए वह कहीं पहले से पैठ बनाने में लगा हुआ है. हम सो रहे हैं.


भारत को छुटभइयेपन से ही फ़ुर्सत नहीं है. दिल्ली में छटांक भर के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भी पर्याप्त मूलभूत सुविधाओं के निर्माण को लेकर भी रोज़ बवाल हुआ रहता है. ले दे कर भारत के पास केवल एक ई0 श्रीधरन हैं जिन्होंने मगरमच्छनुमा नेताओं के बावजूद कोंकण और मैट्रो बनाईं. दूसरे, चतुर्भुज राजमार्ग व तीसरे, पश्चिमी-सीमा रेल मार्ग अन्य बचा खुचा कुछ है जिसकी हम डींगें हांक सकते हैं. यद्यपि नदियों को जोड़ने की योजना ठंडे बस्ते हैं वहीं दूसरी ओर बिजली व पानी की दिशा में हम घोंघा-चाल से चल रहे हैं. आवासीय क्षेत्र तो माफ़िया के भरोसे ही छोड़ रखा है हमने.


लेकिन फिर भी चिंतातुर हो गहन मनन करने की अपेक्षा, चीन को लेकर गाल बजाने से बाज नहीं आते हम.
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-काजल कुमार

2 comments:

  1. सुंदर विवेचन है, देखें तो दर्पण है यह पोस्ट।

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  2. ई श्रीधरन भले ही लायक़ हों लेकिन काम तो उन्होंने विदेशी कंपनी के मोहरे के तौर पर ही किया है।

    क्यों न उठायें श्रीधरन पर सवाल ?

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