सकते हैं.
Saturday, December 18, 2010
आप ब्लागर हैं ! तो यह जानकारी आपको भी होनी ही चाहिये.
सकते हैं.
Saturday, October 16, 2010
Monday, August 30, 2010
हॉटमेल का डब्बा आज फिर गोल हो गया
Sunday, August 15, 2010
Thursday, July 8, 2010
मोबाइल फ़ोन के सभी functions का उपयोग ?..न न न
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-काजल कुमार |
Tuesday, July 6, 2010
कुछ समाचार तकनीक व विज्ञान की दुनिया से
अमेरिका के राष्ट्रपति ने लगभाग 10,000 करोड़ रूपये के बराबर धनराशि सौर ऊर्जा क्षेत्र में कार्य के लिए स्वीकृत की है. इस राशि से नए बिजलीघर स्थापित किये जाएंगे. भारत में भी एक सौर ऊर्जा मंत्रालय है जिसके मंत्री श्री फ़ारूख़ अबदुल्ला हैं. क्या कभी भारत भी इस क्षेत्र में कोई महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करेगा ! |
क्या आप जानते हैं कि माइक्रोसो़फ़्ट की मंशा, बाज़ार में दो मोबाइल फ़ोन लाने की थी. इनका नाम “किन” रखा गया है. लेकिन अब इसने साफ़ किया है कि ये फ़ोन केवल अमेरिका तक ही सीमित रहेंगे. क्या माइक्रोसोफ़्ट को आत्मबोध हो गया है कि हार्डवेयर इसके बस की बात नहीं? | |
बच्चों को आगे बढ़ाने की अंधी दौड़ केवल भारत के ही मध्यवर्ग में नहीं है, अमेरिकी भी इसमें पीछे नहीं हैं. लेकिन वे केवल पढ़ाई के लिए जान देने में ही विश्वास नहीं करते बल्कि उन्होंने एक नया तरीक़ा अपनाया है और वो है बच्चों की पैदाइश ही निर्धारित कर लेना. इस दिशा में, आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि अपुष्ट समाचारों के अनुसार, वहां एक शुक्राणु बैंक की स्थापना की गई है जिसमें नोबल पुरूस्कार विजेताओं के शुक्राणु रख गए हैं जिन्हें भावी माताएं अच्छे बच्चे पैदा करने के लिए प्रयोग कर रही हैं. |
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-काजल कुमार |
Monday, June 28, 2010
लिनक्स संबंधी सबसे बड़ी भ्रांति (3/3)
(लिनक्स पर तीन लेखों की कड़ी में यह तीसरा व अंतिम लेख है) | ||
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एक भ्रांति जो आमतौर पर देखने में आती है वह ये है कि लिनक्स में लिखी फ़ाइलें विंडोज़ में नहीं खुलतीं. सबसे पहले तो यह जान लें कि जैसे विंडोज़ में नहीं बल्कि वर्डप्रोसेसर एम.एस.वर्ड या वर्डप्रो वगैहरा में फ़ाइलें लिखी जाती हैं ठीक उसी तरह लिनक्स में भी फ़ाइलें नहीं लिखी जातीं बल्कि इसमें भी विभिन्न वर्ड प्रोसेसर प्रयुक्त होते हैं. और यही वर्डप्रोसेसर फ़ाइलें लिखने व पढ़ने के लिए प्रयोग होते हैं. इसलिए फ़ाइलों का खुलना-न-खुलना वर्ड प्रोसेसर पर निर्भर करता है. | ||
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एक महत्वपूर्ण बात यदि समझ ली जाए तो बहुत सुविधा होगी और वह ये है कि विंडोज़ के प्रोग्राम जान-बूझकर यह विकल्प नहीं देते कि आप वे फ़ाइलें लिनक्स प्रोग्रामों में खोल सकें क्योंकि विंडोज़, लिनक्स को अपना प्रतिद्वंदि मानता है. जबकि लिनक्स का उद्देश्य विंडोज़ को पछाड़ना है इसलिए लिनक्स के प्रोग्राम आपको विकल्प देते हैं कि आप चाहें तो .doc आदि एक्सटेंशन के साथ फ़ाइलें सेव कर विंडोज़ के प्रोग्रामों में खोल कर काम कर सकें. | ||
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मतलब ये कि विंडोज़ प्रोग्रामों की फ़ाइलों पर आप लिनक्स में भी काम कर सकते हैं. यानि विंडोज़ आपको भले ही अपने ही प्रोग्रामों का ग़ुलाम बना कर रखना चाहता हो, लिनक्स आपको विंडोज़ से तो आज़ादी देता ही है गर आप चाहें तो उन्हीं फ़ाइलों पर विंडोज़ वातावरण में भी काम कर सकते हैं. | ||
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इतना ही नहीं, भले ही विंडोज़ के एम.एस.वर्ड जैसे प्रोग्राम लिनक्स में न चलते हों पर abiword, ओपन आफ़िस जैसे प्रोग्राम लिनक्स में तो चलते ही हैं, इन्हें आप विंडोज़ में भी इन्सटाल कर सकते हैं और इनपर बनाई गई फ़ाइलें दोनों ही वातावरण में चल सकती हैं बस आपको फ़ाइल सेव करते समय फ़ार्मेट का ध्यान रखना होगा. |
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Sunday, June 27, 2010
लिनक्स में वायरस/मैलवेयर क्यों दुखी नहीं करते (2/3)
विंडोज़ में इतनी फ़ाइलें व फ़ोल्डर होते हैं कि कई बार तो मुझे लगता है कि शायद इनका पता तो अब विंडोज़ बनाने वालों को भी नहीं होगा. विंडोज़ में कुछ सिस्टम फ़ोल्डर डिफ़ाल्ट रूप से छुपे रहते हैं जिन्हें हम हिडन (hidden) के नाम से जानते हैं. विंडोज़ इन्हें बहुत महत्वपूर्ण मानता है. इन्हें डिलीट करने से विंडोज़ काम करना बंद कर सकता है या क्रैश हो सकता है. आमतौर से वायरस बनाने वाले लोग भी अपने प्रोग्राम इसी तरह के हिडन फ़ोल्डर में इंस्टाल करते हैं. इनके नाम विंडोज़ फ़ोल्डरों से मिलते जुलते हो सकते हैं. कभी-कभी तो ये अपने प्रोग्राम विंडोज़ के हिडन फ़ोल्डरों में भी इंस्टाल कर देते हैं. इन दोनों ही दशाओं में वायरस/मैलवेयर को ढूंढ पाना बहुत मुश्किल होता है. |
विंडोज़ ने अपनी एकाधिकारात्मक प्रवृत्तियों के चलते अनगिनत दुश्मन बनाए हैं जो इसके हरेक गढ़ में सेंध लगाने के बस बहाने ही ढूंढते रहते हैं जबकि दूसरी ओर लिनक्स, हैक्सर्ज़ व वायरस बनाने वालों का पसंदीदा दुश्मन कभी नहीं रहा. बल्कि सच तो यह है ये लोग लिनक्स को आगे बढ़ाने में हमेशा तत्पर रहे हैं. विश्व के एक से बढ़कर एक साफ़्टवेयर बनाने वाले रचनात्मक मस्तिष्क अपने खाली समय में लिनक्स की प्रगति के लिए योगदान देते आए हैं. और तो और, लिनक्स के सभी संस्करण नियमित रूप से अपडेट देते रहते हैं जिन्हें प्रयोक्ता मुफ़्त ही डाउनलोड भी कर सकते हैं. लिनक्स, एकाधिकारवाद के विरूद्ध, आज एक आंदोलन का नाम है. ऐसा भी नहीं है कि लिनक्स एकदम ही नि:शंक है, इसमें भी कुछ-कुछ अपवाद हैं पर आप इन्हें अपवाद ही मान कर चलें. |
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-काजल कुमार |
Saturday, June 26, 2010
लिनक्स की शान में क़सीदे (1/3)
दूसरे, विंडोज़ की जगह लिनक्स क्यों प्रयोग करें?
लिनक्स के कई संस्करण उपलब्ध हैं जैसे उबुंटू, नोप्पिक्स (knoppix) व फ़ेडोरा इत्यादि. लिनक्स के दो संस्करण, नोप्पिक्स व फ़ेडोरा के आपरेटिंग सिस्टम को तो कंप्यूटर पर इंस्टाल करने की ही ज़रूरत नहीं है. बस आप इन्हें अपनी सी.डी., डी.वी.डी या पेन ड्राइव में ही इंस्टाल कर सकते हैं, उन्हें बूटेबल (bootable) बनाकर.
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यदि आपने अभी भी लिनक्स नहीं आजमाया है तो और समय व्यर्थ न गंवाएं क्योंकि आपको इसका न्यौता देने कभी कोई नहीं आएगा. इसलिए आप इसे आज से ही अपना सकते हैं, और वह भी मुफ़्त, बस आपके पास कुछ समय व अनलिमिटेड डाउनलोड वाला ब्राडबैंड कनेक्शन भर होना चाहिये. मेरी मानिये, दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलिए, आपको यह स्वतंत्रता बहुत पसंद आएगी. | ||||||
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Sunday, June 13, 2010
पोर्न साइट्स पर ये ख़तरे भी हैं
नैतिक ख़तरों के अलावा, पोर्न साइट्स पर कई दूसरे ख़तरे भी हैं जिनकी जानकारी अभी हाल में 35,000 डोमेन पर की गई एक शोध में सामने आई है. इस शोध के तथ्य बी.बी.सी. की साइट पर प्रकाशित हुए हैं. जो मुख्य बातें सामने आई है वे यूं हैं:- |
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Sunday, May 23, 2010
फ़ज़ी टिप्पणियों का इलाज
18 मई 2010 को वेद कुरआन ब्लाग पर मेरे नाम से एक टिप्पणी किसी ने की थी. मुझे भी हैरानी हुई थी. पर फ़र्क़ ये था कि वहां न तो मेरा चित्र था न ही मेरा नाम उस तरह से लिखा था जैसा मैं लिखता हूं. टिप्पणी का लिंक मेरे ब्लाग की ही एक पोस्ट इंगित कर रहा था.
ऐसे में, इसका एक ही इलाज है जो ब्लागर- सेवा प्रदाता की ज़िम्मेदारी भी बनती है कि जैसे ई मेल आई.डी. केवल एक ही हो सकती है उसी तरह केवल एक ही नाम (चाहे ब्लाग का या, ब्लागर का) सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन के लिए स्वीकृत करे. अन्यथा जब तक यह बाधित नहीं किया जाएगा, यह तो होता ही रहेगा.
आमतौर से, ज़्यादा से ज़्यादा IP एड्रैस ढूंढा जा सकता है पर आम ब्लागर न तो इसे ब्लाक कर सकता है (जैसे कि ई मेल में स्पैम ब्लाकर होता है) और न ही मुफ़्त के कानूनी पचड़े में पड़ना पसंद करता है. और सबसे बड़ी बात, शिकायत में ब्लागर लिखेगा भी क्या कि उसे क्या नुक़्सान हुआ ... भारत में हत्यारों को तो सज़ा मिलती नहीं फ़र्ज़ी टिप्पणियों के लिए किसके पास इतना समय, पैसा और धैर्य है !
Saturday, May 15, 2010
हम चीन का मुक़ाबला नहीं कर सकते
आज के 'टाइम्स आफ़ इन्डिया' (15 मई, 2010) में एक लेख छपा है "विचारों की शक्ति". यह लेख चीन के बारे में है. इसमें चीन की राजनैतिक व्यवस्था व पूंजी स्रोत से इतर, केवल विचारों की बात की गई है. जैसे:-
- अकेली यांगत्सी नदी पर ही 17 पुल बनाए जा रहे हैं. इनमें से कई पुलों के लिए 100 साल तक की मुरम्मत का ध्यान रखा जा रहा है.
- पुलों पर दरारों की निगरानी के लिए बिजली से चलने वाली ट्रामों की व्यवस्था है.
- कई पुल लंबाई, उंचाई और सस्पेंशन में विश्व कीर्तिमान बनाने वाले हैं.
- चीन की अभियांत्रिकी ने पश्चिम को पीछे छोड़ दिया है.
- चीन में अभी हवाई यातायात कम है किन्तु अगले 25 वर्ष का पूर्वानुमान लगा कर बीजिंग हवाई अड्डे को लंदन के हीथ्रो से कुल क्षेत्रफल में अधिक रखा गया है..
- कम समय में अधिक यात्रियों को लाने-ले जाने की दृष्टि से कई रेलों की गति 400 कि0मी0 प्रति घंटा से अधिक है.
- तिब्बत को मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए समुद्रतल से 15000 फुट की उंचाई वाले पहाड़ी-क्षेत्र में 2000 कि0मी0 लंबी रेल-लाइन बिछा डाली है, जबकि हम आज भी अंग्रजों की बनाई शिमला-कालका रेल-लाइन का ही राग अलाप रहे हैं.
- भारत में केवल वर्तमान सुविधाओं के विस्तार के ही प्रयत्न किए जाते हैं जबकि चीन हर चीज़ को नए सिरे बना रहा है चाहे वह आवासीय परिसर हों, सड़कें हों, बिजली हो या फर चाहे पानी ही की बात क्यों न हो.
अतिरिक्त इसके, जर्मनी में बनी संसार की पहली चुंबकीय रेल “Levitation Train" जर्मनी में चलने से भी पहले चीन में चली थी. जितनी विदेशी पूंजी चीन जा रही है उसका मुश्किल से 10% भारत आ रहा है. चीन ने अपने पूंजीवादी पांव अफ़्रीका में कई साल पहले से ही फैलाने शुरू कर दिये हैं जबकि अपेक्षाकृत, भारत आज भी इन अफ़्रीकी देशों को मुंह-ज़ुबानी समर्थन से आगे नहीं कुछ नहीं दे रहा है. चीन को पता है कि अफ़्रीका विश्व का अंतिम पिछड़ा इलाक़ा है जहां आने वाले कई दशकों तक पूंजी निवेश की पर्याप्त संभावनाएं रहने वाली हैं, इसीलिए वह कहीं पहले से पैठ बनाने में लगा हुआ है. हम सो रहे हैं.
भारत को छुटभइयेपन से ही फ़ुर्सत नहीं है. दिल्ली में छटांक भर के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए भी पर्याप्त मूलभूत सुविधाओं के निर्माण को लेकर भी रोज़ बवाल हुआ रहता है. ले दे कर भारत के पास केवल एक ई0 श्रीधरन हैं जिन्होंने मगरमच्छनुमा नेताओं के बावजूद कोंकण और मैट्रो बनाईं. दूसरे, चतुर्भुज राजमार्ग व तीसरे, पश्चिमी-सीमा रेल मार्ग अन्य बचा खुचा कुछ है जिसकी हम डींगें हांक सकते हैं. यद्यपि नदियों को जोड़ने की योजना ठंडे बस्ते हैं वहीं दूसरी ओर बिजली व पानी की दिशा में हम घोंघा-चाल से चल रहे हैं. आवासीय क्षेत्र तो माफ़िया के भरोसे ही छोड़ रखा है हमने.
लेकिन फिर भी चिंतातुर हो गहन मनन करने की अपेक्षा, चीन को लेकर गाल बजाने से बाज नहीं आते हम.
Sunday, February 28, 2010
सभी फ़ार्मेट खोलने वाला मुफ़्त वर्ड-प्रोसेसर
Sunday, January 17, 2010
वायरलेस मोडम प्रयोग करे हो ? तब तो ज़रूर पढ़ें…
यदि आप इंटरनेट कनेक्शन के लिए वायरलेस मोडम प्रयोग कर रहे हैं तो आपको यह विचार ज़रूर आता होगा कि और कौन लोग हैं जो आपके मोडम से जुड़े हैं. यह विचार आपको उस समय तो ज़रूर ही आता होगा जब आपको लगता हो कि इंटरनेट गति कुछ कम लग रही है. उस समय आप जानना चाहते हैं कि यदि कोई दूसरा भी आपके इंटरनेट मोडम का प्रयोग कर रहा हो तो उसे कुछ समय के लिए रूकने को कहा जाए. |
घर पर या अपने ही कार्यालय में तो वायरलेस मोडम सुविधा की दृष्टि से प्रयोग किये ही जाते हैं. वायरलेस मोडम को सुरक्षित (secured connection) रूप से कनेक्ट करने का प्रावधान तो रहता है पर कई लोग इसका प्रयोग नहीं करते यह सोच कर कि उनके कनेक्शन की डाउनलोड सीमा असीमित है या, कौन हर कंप्यूटर के लिए पासवर्ड बताता घूमे. बात तो सही है पर याद रखना चाहिए कि बैंडविड्थ सीमित होने के कारण जितने अधिक कंप्यूटर इंटरनेट का प्रयोग एक ही समय करेंगे, उनकी गतिसीमा उतनी ही कम हो जाएगी. |
एक ही वायरलेस मोडम का प्रयोग करते हुए इंटरनेट से जुड़े दूसरे कंप्यूटरों की जानकारी के लिए आप यह छोटा सा फ्रीवेयर http://zamzom.com/ से डाउनलोड कर इंस्टाल कर सकते हैं. Fast Scan बटन से यह आपके कंप्यूटर की जानकारी देता है जबकि, Deep Scan बटन दबाने पर मोडम प्रयोग कर रहे दूसरे कंप्यूटरों की जानकारी देता है. |
0-काजल कुमार |