Friday, July 17, 2009

अब आप नाम नहीं, नंबर से जाने जाएंगे, तैयार हैं !

नेशनल अथॉरिटी फॉर यूनीक आइडेंटिटी (NAUI) की शुरूआत भारत में बहुत पहले हो जानी चाहिए थी. ख़ैर देर आए दुरूस्त आए. लेकिन इसके रास्ते आसान नहीं हैं क्योंकि अभी भी यह साफ़ नहीं है कि इस नंबर के अंतर्गत जो बायोमीट्रिक कार्ड जारी किया जाना है उसकी रणनीति क्या रहेगी.

 

समझा ये जा रहा है कि नंदन नीलेकणी के वर्चश्व में प्रत्येक नागरिक को दिए जाने वाले नंबर का डाटाबेस रहेगा लेकिन, कार्ड जारी करने का काम विभिन्न मंत्रालयों के माध्यम से राज्य सरकारों के सहयोग से होगा यद्यपि इसका कोई imageठोस खाक़ा हमारे सामने नहीं है. इसपर होने वाले खर्च, कार्यदल, कार्यदल गठन की प्रकिया, कार्यदल की समीक्षा, कार्यावधि इत्यादि को लेकर उठने वाले कई सवालों का जवाब भी अभी तक कहीं नहीं मिला है. विषेशकर इस संदर्भ में कि आजतक वोटर पहचान पत्र की प्रकिया ही पूरी तरह संपन्न नहीं हो पाई है जबकि, यह पिछले कई सालों से चल रही है.

 

 

यूनीक आइडेंटिटी नंबर दिए जाने से एक बहुत बड़ा फ़ायदा देश की अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष रूप से होगा. और वह है अवांछित राशन-कार्डों की संख्या पर नियंत्रण पाना. राशन-कार्ड पर मिलने वाली वस्तुओं और खाद्य सामग्री को सस्ता रखने के लिए सरकार हज़ारों करोड़ रूपये की सब्सिडी देती है. लेकिन डुप्लीकेट और ग़लत नामों से बने राशन-कार्डों के चलते यह पैसा अवांछित लोगों की जेब में चला जाता है. इसे रोकने में निसंदेह बहुत बड़ी मदद मिलेगी. जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग आज भी राशन कार्ड को पहचान पत्र के आशय से बनवाता है जिसके चलते भी सब्सिडी का दुरूपयोग होता आया है. आशा करनी चाहिए कि सरकार कम से कम राशन कार्ड चाहने वालों के लिए तो इसे ज़रूरी बनाएगी ही.

 

इस बीच, एक संदेह जो उत्पन्न होता है वह है इन नंबरों को जारी करने की प्रकिया में क्या वास्तव ही में इतनी सावधानी बरती जा सकेगी कि अवांछित लोगों को यह नंबर न दिये जा सकें? विषेशकर इस तथ्य को देखते हुए कि भारत आज लोगों के ग़ैरकानूनी प्रवेश को रोक पाने में स्वयं को अक्षम पा रहा है. इन सवालों का जवाब भी कहीं नहीं मिल रहा है कि इस नंबर वाला कार्ड किन परिस्थितियों में अनिवार्य होगा. और यदि यह सबके लिए अनिवार्य नहीं होगा तो क्या इसका कोई समुचित औचित्य शेष बचता है ? क्योंकि ऐसे में यह तय है कि देश की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा इसे नहीं ही बनवाएगा. तो फिर क्या ये गाल बजाने जैसी ही बात नहीं हुई ?

 

अलबत्ता अब लोग, 46461247 यादव, 7545465 शर्मा, 44654654 वर्मा, 58211768 सक्सेना जैसे नामों से जाने जाएंगे. भले ही कुछ महानुभाव अभी भी राय बहादुर 753467 सिंह ठाकुर जैसे नामों का मोह नहीं ही छोड़ पाएंगे. दक्षिण भारत में बच्चे के नाम से पहले उसके पिता और दादा का नाम जोड़ने का भी चलन है, ज़ाहिर है कि उनके नाम और लंबे होंगे लेकिन इसके चलते ऐसे बच्चों की गणितीय क्षमता में और अधिक वृद्धि की आशा करनी चाहिए.  उन लोगों का न जाने क्या होगा जो बच्चों के नाम सुझाने की किताबें छाप कर ही अपनी दुकानें चलए बैठे थे. उन पंडित जी का भी भला नहीं होगा जो बच्चों के नामकरण समारोहों में जीमने जाते थे.

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3 comments:

  1. और एक चिप भी शरीर में लगाई जाएगी
    जिससे आप आई डी गलत न बतला सकें

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  2. अच्छा प्रयास-अति आवश्यक!

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  3. यह विचार बहुत ही उपयोगी हो सकता है यदि इसको इमानदारी से अपनाया जाय. इसके एक नहीं, सैकडों लाभ हो सकते हैं.

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