इ-बुक रीडर को इ-रीडर के नाम से भी जाना जाता है.
‘इ’ का मतलब यहां ‘इलेक्ट्रॉनिक’ है. सबसे पहले यह जान लीजिए कि इ-बुक रीडर आम
टैबलेट से कैसे भिन्न है. टैबलेट जहां मूलत: इंटरनेट ब्राउज़िंग के उद्देश्य से
बनाए जाते हैं वहीं दूसरी ओर इ-बुक रीडर का मुख्य उद्देश्य किताबें पढ़ने के लिए
बनाया जाना रहता है. इ-बुक रीडर पर पढ़ने से ऑंखों पर ज़ोर नही पड़ता जबकि टैबलेट
पर पढ़ने से कुछ समय बाद ऑंखें थकने लगती हैं. इ-बुक रीडर में आप फॉंट का साइज़
घटा बढ़ा सकते हैं और यह स्क्रीन के साइज़ में अपने आप फ़िट हो जाता है. टैबलेट
का स्क्रीन LCD स्क्रीन होता है. जबकि इ-बुक रीडर के स्क्रीन में eInk या ePaper तकनीक का प्रयोग होता है. eInk/ ePaper में स्क्रीन एकदम
आम काग़ज़ जैसा ही दिखाई देता है. इ-बुक रीडर, टैबलेट की तुलना में आधे वज़न के
या उससे भी कम वज़न के होते हैं और ये टैबलेट से पतले भी होते हैं.आम टैबलेट की
बैटरी जहां आमतौर से 6-7 घंटे ही चलती है, इ-बुक रीडर को आमतौर से 2 से 4 हफ़्ते
में एक बार ही चार्ज करना पड़ता है. अभी जो इ-बुक रीडर बाज़ार में हैं वे मल्टीटच
स्क्रीन वाले नहीं हैं. वे आमतौर से बटनों से ही चलते हैं या बहुत हुआ तो स्टाइलस
से. इनमें अभी भी रेसिस्टिव स्क्रीन का ही प्रयोग होता है न कि कपेस्टिव स्क्रीन
का. कपेस्टिव स्क्रीन, रेसिस्टिव स्क्रीन से कहीं बेहतर होते हैं. आमतौर
से ये 5 से 7 इंच के स्क्रीन-साइज़ में आते हैं पर 9.7 इंच के भी बाज़ार में अब
आने लगे हैं.
अभी इ-बुक रीडर ब्लैक एंड व्हाइट ही हैं, पहला
रंगीन इ-बुक रीडर साल-दो साल पहले ही जारी हुआ है. फ़ुजित्सू और ऐक्टाको इस
क्षेत्र में बड़े नाम हैं. लेकिन रंगीन इ-बुक रीडर की कीमत अधिक होने के कारण
अभी बहुत सुलभ नहीं हैं. लेकिन इस रंगीन तकनीक पर बहुत तेज़ी से काम चल रहा है,
आशा करनी चाहिए कि 2013 में कई नए निर्माता आधुनिक रंगीन इ-बुक रीडर लेकर
बाज़ार में आएंगे और इनकी क़ीमत भी गिरेगी. टैबलेट में रंग कृत्रिम रूप से चटख
दिखाई देते हैं जबकि रंगीन इ-बुक रीडर में, अपने प्राकृतिक रंगों में होने के
कारण सामग्री कुछ कम चमकीली दिखाई देती है.
आपने किंडल, अमेज़न, नुक और बार्न्स एंड नोबल
जैसे कई नाम इ-बुक रीडर के संदर्भ में सुने होंगे. आप यह भी जान लीजिए कि यदि आप इनमें से कोई भी इ-बुक रीडर लेते हैं तो इसमें कुछ तो किताबें मुफ़्त में पहले
से ही लोड मिलेंगी और कुछ अन्य आप लोड कर सकेंगे लेकिन उसी कंपनी की वेबसाइट से,
जिसका इ-बुक रीडर आप लेते हैं. कंपनी की साइट पर दो प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध
रहती हैं एक, वे जो मुफ़्त होती हैं दूसरी, वे जिनके लिए आपको ऑनलाइन भुगतान
करना होगा. इ-बुक रीडर के लिए कई दूसरे
फ़ार्मेट के साथ साथ मुख्यत: .epub (इलेक्ट्रॉनिक पब्लिकेशन) फ़ार्मेट
प्रयुक्त होता है. हिंदी या दूसरी भारतीय भाषाओं के लिए कुछ सीमाएं हैं क्योंकि अभी यह .epub में उपलब्ध नहीं हैं या फिर न होने के बराबर ही उपलब्ध हैं.
भारतीय भाषाओं की पुस्तकें आमतौर से .pdf/.doc जैसे फ़ार्मेट में ही उपलब्ध हैं. .doc के लिए इन इ-बुक
रीडर में हिंदी फ़ाँट उपलब्ध हों, यह ज़रूरी नहीं. इन इ-बुक रीडर में मनचाहे सॉफ़्टवेयर लोड करने की सुविधा नहीं
होती, न ही आप इनमें डाउनलोड किताबें कॉपी कर सकते हैं और न ही दूसरे स्रोतों से
इन इ-बुक रीडर में कॉपी कर सकते हैं. बस यूं समझ लीजिए कि आप एक ऐसे घर के अंदर
हैं जिस पर बाहर से ताला लगा है और उस ताले की चाभी किसी और के पास है. इसी के
चलते दूसरी स्वतंत्र कंपनियों के इ-बुक रीडर काफ़ी प्रचलित हो रहे हैं जिनमें/जिनसे
आप अपनी मर्ज़ी के अनुसार कुछ भी कॉपी कर सकें.
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-काजल कुमार