अपना डोमेन नेम खरीदने के पक्ष में मैंने बहुत से कारण पढ़े. लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण कारण मुझे समझ आया है, वह है काफी छोटा वेब-पता रखने की इच्छा. सवाल ये है कि बस इतनी सी बात के लिए आखिर अपना डोमेन नेम क्यों खरीदा जाए. मसलन मेरे ब्लाग का पूरा पता है - http://kajalkumarcartoons.blogspot.com जबकि ब्राउज़र में मात्र kajal.tk लिखने भर से भी मेरे ब्लाग पर पहुंचा जा सकता है. ऐसे में, पहले तो पैसे देकर अपना डोमेन नेम खरीदना और फिर हर साल उसे रिन्यू करवाते रहने का टन्टा…(?) आखिर ये पाला ही क्यों जाए. यह तो मुझे यूं लगता है मानो दूध-अख़बार-भाजी-प्रेस वाले की तरह एक डोमेन-नेम वाला भी बांध लिया.
कई साल पहले, शुरू-शुरू में जब केवल geocities और googlepages जैसी साइटस ने मुफ्त वेबपेज बनाने की सुविधा देनी शुरू की थी तो मैंने कार्टून पोस्ट करने के लिए वेबपेज http://kajalkumarcartoons.googlepages.com/ बनाया था, जिसे मैंने कुछ समय बाद रिडायरेक्शनल सेवा dot.tk का प्रयोग कर kajalkumar.tk कर दिया. इसे किये भी अब कई साल होने को आए, मुझे आजतक किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा. अब ऐसे में, मेरा डोमेन नेम kajal.tk रहे या kajal.in क्या फ़र्क़ पड़ता है, कौन सी मूंछ नीची हुई जा रही है. न हींग लगी न फिटकरी और रंग भी टनाटन. यहां, http://tips-hindi.blogspot.com/2009/01/shorten-url.html (आशीष खण्डेलवाल) पोस्ट देख सकते हैं जिसमें इस सुविधा को विस्तार से बताया गया है.
इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जहां डोमेन नेम खरीदने के अपने फ़ायदे हैं वहीं दूसरी ओर पब्लिक सर्वर व इसी तरह की अन्य सेवाओं की अपनी सीमाएं हैं. मेरा मानना है कि यदि आपका काम बिना अपना डोमेन नेम खरीदे चल रहा है तो अपना डोमेन नेम क्यों ? और जहां तक बात ब्लागिंग की है, ज्यादातर नियमित पाठक फ़ीड से पढ़ते हैं और फ़ीड के माध्यम से पढ़ने का चलन बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में आपके ब्लाग-पते का महत्व ही समाप्त हो जाता है क्योंकि एक बार फ़ीड, रीडर में जुड़ गई तो इसका काम ख़त्म, फिर फ़ीड में जोड़ा जाने वाला नाम भले ही कितना ही लंबा क्यों न रहा हो.
आजकल का ये डोमेन-नेम बेच कर उससे पलने का धंधा मुझे उन दिनों की याद दिलाता है जब भारत में केवल VSNL ही इंटरनेट सर्विस प्रदाता था. उस समय वो 3000 रुपये के कनेक्शन के साथ, छटांक भर का एक इ-मेल अकांउट देता था. आज बच्चे ये सुनकर हंसते हैं कि हम लोग कुछ MB के अकांउट के लिए यूं लुटा करते थे. कुछ समय पहले तक यही डोमेन नेम कई-कई हज़ार में बिका करते थे जो आज महज़ कुछ सौ रुपयों तक पहुंच गए हैं. ये भी ध्याद देने की बात है कि डोमेन-नेम बेचने वाले franchise की नज़र इस बात पर भी होती है कि आप उसके रेगूलर ग्राहक बनने वाले हैं जो गाहे-बगाहे कुछ न कुछ कमाई कराने वाला काम लेकर उसके पास चला ही रहेगा.
डोमेन नेम खरीदना तो पहले के दिनों में शेयर ख़रीदने-बेचने जैसी प्रकिया लगता है जिसमें ये सब करना पड़ता था कि फ़ार्म लाओ, भरो, चैक भी भरो, भेजो, फिर ख़रीद/फ़रोख्त/अलाटमेंट का पीछा करो, फाइलें संभालो, बोनस और डिविडेंड का हिसाब रखो, बैंक और खाता चैक करते रहो, कंपनियों से रजिस्टर्ड चिट्ठी-प़त्री जारी रखो…एक छोटी सी जान और हज़ार लफ़डे़, कइयों की तो पूरी की पूरी बेचारी ज़िंदगी इसी में निकल जाती थी. दूसरी ओर, डोमेन नेम न खरीदना मानो ऐसा कि आपने एक ढंग के बैंक में डी-मैट अकांउट खोल लिया और चलते बने. बाकी, बैंक और कंपनियां आपस में भुगतते रहेंगे. आप तो, जब जी चाहा नेट खोला और डंडा बजा आए.
आज, आप अपना वेबपेज / ब्लाग अपनी मर्ज़ीं और अपनी सहूलियत के हिसाब से चलाना चाहते हैं क्योंकि इंटरनेट पर टेंपलेट से लेकर तरह-तरह के उपकरण / औजार / जानकारी मुफ्त उपलब्ध हैं. जब आप अपने पैरों भागने –दौड़ने में सक्षम हैं तो बैसाखियां क्यों ?
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सही कहते हैं, आप। यदि आप अपने वेब पेज का व्यावसायिक उपयोग नहीं कर रहे हैं तो कोई आवश्यकता नहीं। पर व्यावसायिक होना हो तो अपना डोमेन फायदेमंद है।
ReplyDeletebahut achchhi jaankari di aapane ..........bahut sundar
ReplyDeleteकाजल भाई इसका भी एक कार्टुन बना देते..:)
ReplyDeleteसही है.
ReplyDeleteअगर आपका उद्देश्य सिर्फ दिल की बात दुनिया के सामने रखना है तो डोमेन के बिना भी काम चल सकता है. पर अगर आपके प्रोफेश्न्नल उद्देश्य (प्रचार, सामाजिक प्रतिनिधित्व, इमेज मैनेजमेंट, नेट द्वारा आय, इंटरनेट पर व्यापर करना, ऑनलाइन सेवाएँ प्रदान करना इत्यादि ) हैं तो डोमेन लेना और व्यावसायिक होस्टिंग/डिजाइनिग सेवा लेना उचित है.
ररे आप तो लिख्ते भी बहुत अच्छा है मैने तो फलि बार पडःअ है आपका लेख सही कहा आपने आभार
ReplyDelete@ रंजन
ReplyDeleteNoted :-)
@ Nirmla Kapila
ReplyDeleteविनम्र आभार :)
एकदम से मन की बात कर दी आपने, और स्पष्ट भी कर दिया । आशीष जी की छोटे पते वाली पोस्ट तो पढ़ी ही थी हमने । आभार ।
ReplyDeleteKAJAL BHAI..AAP JITNE SUNDAR CARTOON BANATE HO UTNA HI ACHHA LIKHTE BHI HO, MERI BHI YE MANG HAI KI AAP DOMAN PAR HI EK CARTOON BANA DALO...MERI MANG PURI HO..MANG BHARO SAJNA..HA..HA..HA...
ReplyDeleteIs vishay par ek aur paksh janane ko mila.
ReplyDeleteबहुत अच्छा विश्लेषण !
ReplyDeletebadhiya jaankaari
ReplyDeleteजब तक आपका लक्ष्य प्रोफेशनल होना न हो,मुफ्त की सेवा ही अच्छी है....पर जैसा की आशीष जी ने कहा था उस पोस्ट में अगर विज्ञापन डेशबोर्ड से उठकर ब्लॉग के साइड बार में आ गए तब मैं अपना डोमेन लेना पसंद करुँगी.
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत हूं.. लेकिन मेरे ख्याल से अपना डोमेन नाम खरीदना अपनी खुद की गाड़ी के खरीदने जैसा है। आप चाहें तो गाड़ी की कीमत के सिर्फ़ ब्याज में आसानी से हर दिन टैक्सी किराए पर ले सकते हैं और उतनी ही सुविधाएं पा सकते हैं, लेकिन अपनी गाड़ी होने की आत्मसंतुष्टि और लोगों के बीच आपकी छवि दोनों मामलों में कितनी अलग होती है? और यह तो अपनी अपनी अत्मसंतुष्टि की बात है.:)
ReplyDeleteआपने यह अच्छी बात बताई. पर मुझे ऐसा लगता है कि आगे पीछे ये कहीं टेलीविजन चैनलों वाला फ़्री और पे चैनलों जैसा हाल ना हो जाये?:)
ReplyDeleteरामराम.