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मोबाइल
फ़ोन जहां एक ओर सुविधा देते हैं वहीं दूसरी ओर झुंझलाहट व तनाव भी देते हैं. यहां मेरा अभिप्राय तरंगों के तनाव से नहीं है अपितु उस तनाव से है जिसके चलते आप अपने मोबाइल फ़ोन में दी गई उन सभी सुविधाओं का उपयोग नहीं कर पाते जो या तो मोबाइल फ़ोन विक्रेता ने आपको फ़ोन बेचते समय बताई थीं या आपने उनके बारे में मोबाइल कंपनी की वेबसाइट पर पढ़ा है या उसके मैनुअल में कुछ-कुछ बताया गया है. या कहीं और से आपको पता चल ही गया है. इसीके चलते मेरी हालत तो महज़ इतनी ही रह जाती है कि घंटी बजे तो हरा बटन दबा कर हैलो कर लो.....बात ख़त्म करनी हो तो लाल बटन दबा दो.
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आपने
बहुत सी सुविधाओं के बारे में पढ़ा होगा कि आपका फ़ोन ई-मेल व इंटरनेट सुविधा-समर्थ है, इसमें 2G व 3G जैसी सुविधाएं मिल सकती हैं, कि आपके फ़ोन में WAP, GPRS जैसी सुविधाएं भी हैं, आप इसमें भारतीय भाषाएं भी टाइप कर सकते हैं, इसमें बहुत सी मल्टीमीडिया सुविधाएं हैं, आप इसे डायरी की तरह भी प्रयोग कर सकते हैं इत्यादि. और तो और, नए मोबाइल फ़ोन इतने फ़ंक्शनस के साथ आ रहे हैं कि ये पहले से भी कहीं अधिक पेचीदा होते जा रहे हैं.
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मोबाइल
फ़ोन की दुनिया में आपके लिए दो ही इंटरफ़ेस हैं एक, फ़ोन विक्रेता दूसरा सेवा-प्रदाता. फ़ोन विक्रेता तो बस केले-साबुन-परचून की ही तरह मोबाइल फ़ोन भी बेचता है, उसे न तो मोबाइल फ़ोन की तकनीक से कोई मतलब होता है न ही उसका इतना स्तर होता है कि वह कुछ मूलभूत functions से आगे सीखकर आपको भी कुछ बता सके क्योंकि मोबाइल फ़ोन बनाने वाली कंपनियों के यहां ऐसा कोई प्रावधान नहीं होता कि वे फ़ोन विक्रेताओं को अपने विभिन्न माडलों के फ़ंक्शनस की कोई ट्रेनिंग देती हों. कनेक्शन सेवा-प्रदाता को तो बस नोट कूटने से ही फ़ुर्सत नहीं होती इसलिए उनके यहां जो लोग बिठाए जाते हैं वे या तो बिल ठीक करने की कंप्लेंट सुनते हैं या नए कनेक्शन की फ़ीस बताते हैं…बस्स.
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ऐसे
में, मोबाइल फ़ोन के मालिक की हालत उस नवकिशोर की सी होती है जो यौन शिक्षा की जानकारी के लिए अपने ही हमउम्रों के यहां-वहां डोलता घूमता है. इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी या तो सिलसिलेवार नहीं मिलती या बहुत क्लिष्ट लगती है, जिन्हें आप जानते हैं वे भी आपकी ही तरह कुछ ज़्यादा नहीं जानते. दुकान वाला भी निरीह सा ही दिखता है. सर्विस प्रदाता तो वावळे गांव के पहाड़ के नीचे आए ऊंट सा बैठा दीखता है, मोबाइल फ़ोन बनाने वाली कंपनी की वेबसाइट पर या तो “हमसे संपर्क करें” जैसा कुछ होता ही नहीं या फिर आपकी ई-मेल का व्यक्तिगत उत्तर न देकर कोई दार्शनिक सा उत्तर भेज कर पूरे कांड की ही इतिश्री कर देती है वो कंपनी. ऐसे में कोई करे तो क्या करे.
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मोबाइल
फ़ोन बनाने वाली बड़ी कंपनियां आमतौर से अपने सर्विस सेंटर स्थापित करती हैं. यहां दो तरह के लोग काम करते हैं एक, वे जो केवल हार्डवेयर के बारे में जानते हैं दूसरे वे जो केवल पहले वाला मोबाइल सोफ़्टवेयर फ़ार्मेट कर नया रि-इंस्टाल करना भर जानते हैं. इससे ज़्यादा ये भी कुछ नहीं जानते. ऐसे में कहीं बेहतर होगा कि मोबाइल फ़ोन निर्माता अपने सर्विस सेंटरों पर ऐसे लोगों की भी नियुक्ति करें जो पूर्णत: प्रशिक्षित हों और यदि कोई ग्राहक किन्ही फ़ंक्शनज़ की जानकारी चाहता हो तो वह भी उसे दी जाए. हो सकता है, आने वाले कल में इस बात पर भी विचार किया जाए.
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