यदि आपने ई-बुक रीडर देखा है तो आप ई-इंक तकनीक से अवगत हैं. आज, सभी ई-बुक
रीडर में इसी तकनीक-आधारित स्क्रीन प्रयोग होते हैं, यद्यपि कुछ ई-बुक रीडर अब
एल.सी.डी. /एल.ई.डी. (LCD/LED) स्क्रीन के साथ भी बाजार में आने लगे हैं लेकिन, ई-इंक के बारे में
जानकारी रखने वाले लोग इन्हें ई-बुक रीडर के बजाय, टैबलेट मानकर ही ख़रीदते हैं
क्योंकि किसी भी आम टैबलेट और तथाकथित एल.सी.डी. /एल.ई.डी. ई-बुक रीडर में नाम
के अलावा कोई अंतर नहीं होता.
ई-इंक, ‘इलेक्ट्रॉनिक इंक’ का लघु शब्द है. अभी तक हम मोबाईल, टैबलेट इत्यादि
में शीशे के एल.सी.डी. /एल.ई.डी. स्क्रीन/मॉनीटर देखते आए हैं. किंतु आने वाले
समय में, हम इनकी जगह मोड़ी जा सकने वाली प्लास्टिक को स्क्रीन की तरह प्रयोग
होते देखेंगे. इसकी विशेषता यह है कि इसके स्क्रीन में चमक नहीं होती और इस पर
शब्द/ चित्र ठीक वैसे ही दिखते हैं जैसे किसी काग़ज पर छपे हुए शब्द या चित्र.
अब इनमें पूरी तरह टच-आधारित स्क्रीन आने लगे हैं जबकि पहले इसके स्क्रीन को
विशेष पेन यक कीबोर्ड से ही प्रयोग किया जा सकता था. इसके स्क्रीन को सूर्य की रोशनी में भी ठीक
वैसे ही पढ़ा जा सकता है जैसे आप किसी दूसरे छपे हुए काग़ज़ को पढ़ते हैं. कई निर्माता
ई-बुक रीडर के स्क्रीन पर सामने से रोशनी के लिए प्रावधान भी करने लगे हैं जैसा
कि एल.सी.डी. /एल.ई.डी. स्क्रीन में किया
जाता है.
अभी इस तकनीक का प्रयोग ई-बुक रीडर में सर्वाधिक हो रहा है. लेकिन अब इसे
घड़ियों में भी प्रयोग किया जाने लगा है. ये घड़ियां विदेशों में आम उपभोक्ताओं
के लिए ऑन-लाइन उपलब्ध हैं. मोबाईल फ़ोन में ई-इंक आधारित स्क्रीन का प्रयोग
पहले-पहल मोटोरोला ने 2006 में किया था. इस प्रकार ‘मोटोफ़ोन एफ-3’ ई-इंक स्क्रीन वाला दुनिया का पहला मोबाइल फ़ोन बन
गया. अब, दुनिया का पहला एंड्रॉयड-फ़ोन रूसी कंपनी योटाफ़ोन्स ने हाल ही में बनाया
है जिसमें इस तकनीक का प्रयोग किया गया है. योटा फ़ोन में दो स्क्रीन हैं, एक तो
पारंपरिक एल.सी.डी. स्क्रीन और उसी के पीछे दूसरा ई-इंक स्क्रीन. इस मोबाइल
फ़ोन में ई-इंक स्क्रीन को दूसरे अतिरिक्त स्क्रीन के रूप में उपलब्ध करवाया
गया है. इस प्रकार, एल.सी.डी. स्क्रीन पर लोग पारंपरिक काम कर सकते हैं और ई-इंक
स्क्रीन को बैक-अप स्क्रीन की तरह प्रयोग कर सकते हैं; या किसी भी अन्य चित्र या सूचना इत्यादि
को स्थायी रूप से वहां दिखाई देने के लिए रख सकते हैं.
ई-इंक की अवधारणा पर कार्य, अमरीका के प्रसिद्ध मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ
टेक्नोलॉजी से संबद्ध एक संस्थान ने करना प्रारम्भ किया था. अब यह संस्थान एक
कंपनी में परिवर्तित हो कर ‘ई-इंक कारपोरेशन’ के नाम से स्वतंत्र रूप से इस
क्षेत्र में कार्य कर रहा है. इससे मिलती
जुलती कुछ अन्य तकनीकों पर भी दूसरी कंपनियां कार्य कर रही हैं पर अभी उन
तकनीकों का बाजार में चलन अधिक नहीं हैं.
ई-इंक स्क्रीन बहुत ही महीन छोटे-छोट
कैप्सूलों से मिल कर बना होता है. प्रत्येक कैप्सूल में ई-इंक के सफेद कण भरे
होते हैं. स्क्रीन पर कुछ भी दिखाने के लिए कैप्सूल के निचले हिस्से के इन
कणों में बिजली प्रवाहित की जाती है. बिजली प्रवाहित होने से इन निचले कणों
का रंग काला हो जाता है और ये सतह के ऊपर की तरफ आ जाते हैं. इस प्रकार हम सतह के
ऊपरी हिस्से में काले रंग में उभरते शब्द / चित्र देख पाते हैं. यही कारण है
कि यदि इस स्क्रीन के किसी हिस्से को तोड़-मरोड़ या जला कर नष्ट भी कर दिया
जाए तो भी स्क्रीन के बाक़ी हिस्से के वे कैप्सूल चित्र/ शब्द दिखाते रहते
हैं जो खंडित नहीं हैं. जबकि एल.सी.डी.
/एल.ई.डी. (LCD/LED) स्क्रीन
अगर कहीं से भी टूट जाए तो पूरे ही स्क्रीन पर चित्र आना बंद हो जाता है. दूसरे
शब्दों में कहें तो, प्रत्येक कैप्सूल ही अपने आप में एक स्वतंत्र स्क्रीन
इकाई है, इस तकनीक की यही विशेषता इसे लचकदार भी बनाती है.
ई-इंक तकनीक का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें ऊर्जा बहुत
कम प्रयुक्त होती है और यदि स्क्रीन को रिफ़्रेश न करें तो उस पर उभरा अंतिम चित्र,
ऊर्जा की खपत बिलकुल ही नहीं करता, और चित्र अगली बार रिफ़्रेश किए जाने तक वैसे
ही दिखता रहता है. यह मुख्यत: श्वेत-श्याम तकनीक थी लेकिन अब इसमें रंगीन स्क्रीन
भी आने लगे हैं यद्यपि ये अभी एल.सी.डी. /एल.ई.डी. जैसे चटख रंगीन नहीं हैं. इस
तकनीक में अभी आगे काम चल रहा है. अभी इस तकनीक ने फ़िल्म चलाने लायक गति
प्राप्त नहीं की है किंतु अब यह कार्टून-एनीमेशन सक्षम है. आशा की जानी चाहिए कि
जल्द ही इसमें रंगीन फ़िल्में भी सामान्य गति पर देखी जा सकेंगी.
इस तकनीक के बहुत से लाभ हैं जैसे, शीशे पर निर्भरता और
बड़ी बैटरी की आवश्यकता समाप्त हो जाने से उपकरणों का वज़न बहुत कम हो जाएगा,
इसके स्क्रीन से आंखें नहीं थकतीं, शीशे के टूटने का जो डर सदा बना रहता है वह इसके
साथ नहीं है, ऊर्जा-खपत बहुत कम होना इसकी विशेषता है जिसके कारण इसे क्रेडिट
कार्ड तक में प्रयोग किया जा रहा है, बहुत कम ऊर्जा की खपत के कारण इस तकनीक को
प्रयोग करने वाले उपकरण गर्म नहीं होते. लचीले
स्क्रीन के कारण इसके प्रयोग की संभावनाएं असीम हैं. आज र्इ-इंक तकनीक का
प्रयोग करने वाली कंपनियों में अमेज़न, बर्न्स एंड नोबल,
कैसियो, सिटिज़न, हिताची, मोटरोला, प्लास्टिक लॉजिक,
सैमसंग और सोनी इत्यादि हैं.
और अधिक जानकारी के लिए इंटरनेट पर निम्न लिंक भी देखे जा सकते हैं.
Yota phone
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https://www.youtube.com/watch?NR=1&feature=endscreen&v=naZ0VYGbWts
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Plastic paper
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https://www.youtube.com/watch?NR=1&v=FPYjP1m05dA&feature=fvwp
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Sony Pad
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https://www.youtube.com/watch?v=94Ifhuc2bbQ
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Other products
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https://www.youtube.com/watch?v=YtXRG7sS3ps
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Future products
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https://www.youtube.com/watch?v=RklWfdwYK9w
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-काजल कुमार