Sunday, November 20, 2011

अब एंड्रायड में भी एक बटन से स्क्रीनशॉट लिया जा सकता है.

एंड्रायड आधारित मोबाइल फ़ोन में अभी तक स्क्रीनशॉट लेना बड़ी टेढ़ी खीर थी. स्क्रीनशॉट लेने के लिए बड़ा लंबा रास्ता तय करना पड़ता था जो कि दूसरे साफ़्टवेयर की मदद से लैपटॉप/ डैस्कटॉप से हो कर गुजरता था. जबकि विंडोज़ में इसके लिए एक सीधा सा बटन कीबोर्ड पर ही लगा मिलता चला आया है जिसपर ‘PrintScreen’ लिखा होता था. इसलिए एंड्रायड में स्क्रीनशॉट लेना और भी दुरूह कार्य लगता था.
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एंड्रायड में लिया गया स्क्रीनशाट
लेकिन अब ये समस्या भी दूर हो गई है. सोनी एरिक्सन ने एक्पीरिया आर्क में सिस्टम अपग्रेड दिया है. इस अपग्रेड में जो तीन मुख्य बातें हैं, वे हैं 1- स्क्रीनशॉट की सुविधा. स्क्रीनशॉट के लिए पावर बटन को दबाने पर अब एक विकल्प और आने लगा है जिसे चुनने पर आप मोबाइल का स्क्रीनशॉट ले सकते हैं. 2- इसके अतिरिक्त, फ़ोटो खीचते समय इसमें एक नया फ़ीचर पैनोरामा भी मिलने लगा है. इसमें आप, काफी बड़ी फ़ोटो खींच सकते हैं. नीचे के चित्र में देखने पर पता चलता है कि बाएं से लेकर दाएं तक का चित्र आम कैमरे में नहीं आ सकता था. 3- पहले इसमें वीडियो फ़िल्म लेते समय ज़ूम का विकल्प नहीं था अब यह भी 16X तक उपलब्ध कराया गया है हालांकि यह अभी झटके से दृश्य को आगे पीछे करता है व बटन की आवाज़ भी रिकार्ड कर लेता है, पर कुछ भी न होने से यह बेहतर है. आशा है कि आगे चलकर इस स्थिति में और सुधार किया जाएगा.
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पैनोरामा विहंगम दृश्य
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-काजल कुमार

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Wednesday, November 9, 2011

लो जी, अडोब फ़्लैश भी गया.

 
 

जब से एप्पल का आईपैड आया है तब से लोगों को पता चलने लगा कि उसमें फ़्लैश नहीं चलता. वर्ना लोगों को तो इंटरनैट पर फ़लैश ठीक ऐसे ही लगता था जैसे विंडो के साथ एक्सप्लोरर. अडोब का फ़्लैश प्लेयर इंटरनेट पर वीडियो दिखाने का काम करता है. इंटरनेट पर अधिकांश वीडियो फ़्लैश प्लेयर में ही दिखाई देने के हिसाब से बनाए जाते रहे हैं.

इसके अलावा कई दूसरे फ़ार्मेट में भी वीडियो फ़ाइलें इंटनेट पर मिलती हैं जो कि एप्पल के Quicktime बगैहरा पर ही चलती हैं. हालांकि K-Lite सरीखे कोडेक से कई अलग-अलग प्लेटफ़ार्म वाली फ़ाइलें भी एक ही साफ़्टवेयर में चलाई जा सकती हैं.  Java और HTML दूसरे विकल्प सामने आने से अडोब फ़्लैश का हिस्सा कम होने लगा था.

वहीं दूसरी ओर  एंड्रायड ने रही सही क़सर निकाल दी. एंड्रायड  के शुरूआती संस्करणों में तो फ़लैश फ़ाइलें चलती ही नहीं थीं और जिन फ़्लैश संस्करणों को एंड्रायड में चलने लायक बनाया भी गया, वे बेअसर साबित होते रहे, कभी क्रैश हो कर तो कभी उपकरण की बैटरी की खपत बढ़ा कर.

एक अन्य बात जो सामने आई वह ये कि अडोब का फ़्लैश विभिन्न प्रकार के आपरेटिंग सिस्टम के साथ पांव से पांव मिलाकर चलने में पिछड़ने लगा. इस तरह अंत में, अडोब ने अपने हथियार डालते हुए फ़ैसला किया कि फ़्लैश के दिन लद गए.

यूं भी अब कंप्यूटर की दुनिया के लोगों को मान ही लेना चाहिये कि अब इस क्षेत्र में एकाधिकार के दिन बीत गए हैं. यह ख़बर wired.com के साभार है.
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-काजल कुमार

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